Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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भोगभूमियों के प्रायुबन्ध की योग्यता कब होती है ? ( दो मत ) शंका-भोगभूमियामनुष्य और तियंचों के भुज्यमानआय के ९ माह अवशेष रहने पर आगामोभव के मायुबंध की योग्यता बतलाई है । गाथा ९१७ में बड़ी टीका में ६ माह अवशेष रहने पर आयुबंध को योग्यता बतलाई है सो कैसे?
समाधान-भोगभूमियामनुष्य व तियंच के भुज्यमानायु के ९ मास व छहमास शेष रह जानेपर परभविकआयुबंध की योग्यता होती है, ये दोनों कथन गोम्मटसार-कर्मकांड की बड़ी टीका में पाये जाते हैं। इन दोनों कथनों में संभवतः भरत-ऐरावत में सुखमादि तीनकाल की तथा हैमवत आदि क्षेत्रों की शाश्वतभोगभूमिया की विवक्षा रही है । भरत और ऐरावत क्षेत्रों में शाश्वतभोगभूमि नहीं है अतः यहाँ पर भुज्यमानआयु के ६ माह शेष रहनेपर परभवआयु बंधकी योग्यता हो जाती है और शाश्वतभोगभूमियों में ६ माह आयु शेष रहने पर परभवआयुबंध की योग्यता होती है, किन्तु श्री धवल ग्रंथ में ६ माह आयु शेष रहनेपर परभवायु बंधकी योग्यता बतलाई है।
"णिरुवक्कमाउआ पुण छम्मासावसे से आउअबंध-पाओग्गा होति ।" ( धवल पु० १० १० २३४ ) अर्थ-जो निरुपक्रमायुष्क जीव हैं वे अपनी भुज्यमानायु छहमाह शेष रहनेपर प्रायुबंध के योग्य होते हैं । "औपपादिक चरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः।" ॥५३॥ ( मो० शास्त्र अ० २)
अर्थात- औपपादिक ( देव व नारकी ), चरमोत्तमदेहा ( तद्भवमोक्षगामी ) और असंख्यातवर्ष की आयुवाले ( भोगभूमिया ) ये जीवों की अनपवर्त आयुवाले ( निरुपक्रमायुष्क ) होते हैं ।
श्री धवल-ग्रंथराज के अनुसार सभी भोगभूमियाजीव भुज्यमानआयु के ६ मास शेष रह जाने पर परभविकायु बंध के योग्य होते हैं ।
-जं. ग. 9-5-66/IX/. ला. जैन कर्मभूमिया मनुष्य की आयु पूर्वकोटि से अधिक नहीं होती शंका-श्री ध० पु० १० पृष्ठ ३०७ पर इसप्रकार कहा है-'समऊण पुवकोडि संजममणुपालिय खोणकसायो जावो' यह कैसे घटित होगा? मनुष्यों की आयु पूर्वकोटि से अधिक भी होती है क्या ? .
समाधान-श्री ध० पु० १० १० ३०६ के अन्तिम पेरे के प्रारम्भ में कहा है-'अब काल की हानि का आश्रयकर गुणितकौशिक के अजघन्य द्रव्यका प्रमाण कहते हैं।' इससे प्रतीत होता है कि संयमकाल में उत्तरोत्तर एक-एक समय की हानि कर अजघन्यद्रव्य के प्रमाण का कथन किया गया है। अतः पृष्ठ ३०७ पर 'समऊणपुव्व. कोड संजममणपालिय खीणकसाओ जादो।' इस पंक्ति का अर्थ यद्यपि 'एकसमयकम पूर्वकोटि तक संयम का पालन कर क्षीणकषाय हुआ' यह होता है; किन्तु इसका अभिप्राय यह है कि उपर्युक्त 'सात मास अधिक आठवर्षकम पूर्वकोटि' से एकसमयकम अर्यात सातमास आठवर्षकम पूर्वकोटिसे भी एकसमयकम कालतक संयम का पालनकर क्षीणकषाय हुआ। कर्मभूमिज मनुष्यों की आयु एकपूर्वकोटि से अधिक नहीं होती और आठवर्ष से पूर्व संयमग्रहण करना अशक्य है, अतः एकसमयकम पूर्वकोटितक संयम का पालन करना असंभव है। 'कुछकम पूर्वकोटि' को स्यूलरूप से 'पूर्वकोटि' कहा है । पूर्वापर संबंध से यह बात स्पष्ट हो जाती है ।
-जे.सं. 8-1-59/V/मा. सु. रांवका, ब्यावर
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