Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
६०२ ]
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान-सर्वार्थसिद्धि से मनुष्यों में उत्पन्न होने वालों के अवधिज्ञान साथ आता है, ऐसा सर्वज्ञ का उपदेश है। द्वादशांग के सूत्र निम्न प्रकार हैं, जिनको भूतबलि आचार्य ने षट्खंडागम में ग्रंथित किया था
सम्वसिद्धिविमाणवासियदेवा देवेहि चदुसमाणा कदि गदीओ आगच्छति ॥२४१॥ एक्कं हि चेव मणुसगदिमागच्छति ॥ २४२ ॥ मणुसेसु उवणल्लया मणुसा तेसिमाभिणिबोहियणाणं सुदणाणं ओहिणाणं च णियमा अस्थि । .......... ॥२४३॥ धवल पु० ६ ० ५००
अर्थ-सर्वार्थ सिद्धि विमानवासी देव देवपर्यायों से च्युत होकर कितनी गतियों में आते हैं ? सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव च्यत होकर केवल एक मनुष्यगति में ही पाते हैं।
सर्वार्थसिद्धि विमान से च्युत होकर मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुत ज्ञान और अवधिज्ञान नियम से होता है।
-जं. ग. 12-8-65/V/ अ. कुन्दनलाल
जीवों का अन्य भव विषयक उत्पत्ति स्थान कथंचित् नियत व कथंचित् अनियत
शंका-जीवों का उत्पत्ति स्थान कैसे और कब नियत होता है अर्थात मरने के बाद या मरने से कुछ पहले या आयु बंध के समय ? किसी जीव का कोई उत्पत्ति स्थान नियत हुआ, किन्तु इसी बीच में वह योनि स्थान बिगड़ जाय तब वह जीव कहाँ उत्पन्न होगा?
समाधान-उत्पत्तिस्थान के नियत होने के विषय में कोई स्पष्ट निर्देश प्रार्ष ग्रन्थों में मेरे देखने में नहीं आया। विभिन्न ग्रन्थों का स्वाध्याय करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि उत्पत्ति स्थान के नियत होने का कोई एकान्त नियम नहीं है।
राजा श्रेणिक ने सातवें नरक की आयु का बंध किया था और आयु बंध के समय सातवा नरक उत्पत्ति स्थान नियत हो गया था, किन्तु आयु का अपकर्षण करके मात्र चौरासी हजार वर्ष की आयु कर ली जिससे राजा श्रेणिक मरकर प्रथम नरक के प्रथम पाथड़े में उत्पन्न हुए। घातायुष्क वाले जीव मायु बंध अन्य स्वर्ग की करते हैं और मरकर अन्य स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं। इसलिये आयु बंध के समय उत्पत्ति स्थान नियत हो जाता है, ऐसा एकान्त नियम नहीं है।
जो मारणान्तिक समुद्घात करने वाले जीव हैं, इनका मरण से अन्तर्मुहुर्त पूर्व उत्पत्ति स्थान नियत हो जाता है। कुछ का मरण समय उत्पत्ति स्थान नियत होता है।
तीर्थकर आदि का उत्पत्तिस्थान बहुत पहले नियत हो जाता है ।
श्रीकृष्ण के सुपुत्र शम्बु का उत्पत्ति स्थान हार पर निर्भर था। इस प्रकार जीव के उत्पत्ति स्थान के नियत होने का कोई एकान्त नियम नहीं है।
-जें. ग. 12-2-70/VII/ र. ला. जैन, मेरठ
Jain Education International
Jain Education International
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org