Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व 1
[ ६५१ साबुत अनाज को भक्ष्याभक्ष्यता का विचार शंका-साबुत अनाज अभक्ष्य है क्या ? अर्थात भुने हुए चने, भुनी हुई मक्का ये अभक्ष्य हैं या भक्ष्य ? यदि ये अभक्ष्य हैं तो मटर का शाक अभक्ष्य क्यों नहीं ? चावल अभक्ष्य क्यों नहीं ?
समाधान-त्रसघात, मादक, बहुघात, अनिष्ट और अनुपसेव्य ये पांव अभक्ष्य हैं । श्री समन्तभद्राचार्य ने रत्नकरण श्रावकाचार में इनका स्वरूप निम्न प्रकार कहा है
स हतिपरिहरणार्थ मौद्र पिशितं प्रमावपरिहतये । मद्य च वर्जनीयं जिनचरणौ शरणमुपयातः ॥ ८४ ॥ अल्प फलबहुविधातान्मूलक मात्राणि ङ्गवेराणि । मवनीत निम्बकुसुमम्, केतकमित्येवमवहेयम् ॥ ८५॥ यनिष्टं तद्वतयेद्यच्चानुप सेव्यमेतदपि जह्यात् ।
अभिसन्धिकृताविरति विषयायोग्यावतं भवति ॥८६॥ जिनेन्द्र भगवान के चरणों की शरण में पाये हए श्रावक को प्रसघात का त्याग करना चाहिये । मधु और मांस में प्रसघात का दोष लगता है अतः इनका सेवन नहीं करना चाहिए । मदिरा मादक है। अतः प्रमाद को दूर करने के लिये मदिरा छोड़ देनी चाहिये। जिनमें बहुघात होता हो ऐसे गीले अदरक, मूली, मक्खन, नीम के फूल, केतकी के फूल, इसी प्रकार के अन्य पदार्थ भी छोड़ने चाहिये। जो वस्तु अनिष्ट है उसे छोड़ना चाहिये और जो अनुपसेव्य है उसे भी छोड़ देना चाहिये।
यदि चना, मक्का या मटर आदि धुन गई हैं या घुने हुए की सम्भावना है तो उनको सेवन नहीं करना चाहिये, क्योंकि उनके सेवन में सघात का दोष लगता है अतः अभक्ष्य है। वर्षाऋतु में प्रायः अन्न घुन जाते हैं उनके अन्दर जीवोत्पत्ति हो जाती है अतः वर्षाकाल में साबुत अन्न का भक्षण नहीं करना चाहिये । जिस अनाज पर वर्षाकाल बीत गया है वह अनाज भी साबुत नहीं खाना चाहिये। वैसे साबुत अनाज अभक्ष्य नहीं है।
-जं. ग. 27-7-72/IX/र. ला. जैन, मेरठ
दान
सम्यक्त्वी दान व पूजा अवश्य करे
शंका-देवपूजा में आरम्भ भी होता है और राग भी होता है। ये दोनों बंध के कारण हैं। सम्यग्दृष्टि बंध के कारणों में बुद्धिपूर्वक प्रवृत्ति नहीं करता है तो सम्यग्दृष्टिधावक को पूजन व दान का उपदेश क्यों दिया गया?
समाधान-सम्यग्दृष्टि का पुण्य मोक्ष का कारण होता है, यही समझकर गृहस्थों को यत्न पूर्वक पुण्य का उपार्जन करते रहना चाहिए ॥४२४॥ जब तक सकल संयम प्राप्त न हो जाय तब तक समस्त पापों को नाश करने वाने और मोक्ष के कारण भूत ऐसे विशेष पुण्य को उपार्जन करते रहना चाहिए ॥४८७।। पुण्य के कारणों में सबसे प्रथम भगवान जिनेन्द्रदेव की पूजा है, इसलिये समस्त श्रावकों को परमभक्ति पूर्बक भगवान जिनेन्द्रदेव की पूजा
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