Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान-दान के पात्र सम्यग्दृष्टि मनुष्य या तिथंच होते हैं और वे देवगति का बंध करते हैं। जिन्होंने पूर्वभव में दान नहीं दिया और हिंसा आदि पाप किये हैं वे जीव धन हीन व दीन होते हैं और दूसरों के अधीन होते हैं। जिनके लोभकषाय अति तीव्र है वे मंदिरों का रुपया व अन्य वस्तु खाते हैं। इस महान् पाप के कारण वे दुर्गति-नरक या तिर्यंचगति को जाते हैं।
-जं. ग. 2-5-63/IX/ मगनमाला
चार प्रकार के प्राहार
शंका-धवल पुस्तक १३ पृ० ५५ पर चार प्रकार का आहार बतलाया है-अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य । कौन-कौन पवार्थ अशन आदि हैं ?
समाधान-प्रशन जिससे भूख मिटती हो जैसे खिचड़ी, रोटी आदि। जिससे दसप्रकार के प्राणों पर अनुग्रह होता है उस को पान कहते हैं जैसे दूध आदि । लड्डू आदिक पदार्थों को खाद्य कहते हैं और इलायची आदि को स्वाद्य कहते हैं। श्री मूलाचार अधिकार ७ गाथा १४७ की टीका में भी लिखा है-"अशनं क्षुदुपशमनं बुभुक्षो. परतिः प्राणानां दशप्रकाराणामनुग्रहो येन तत्तथा खाद्यत इति खाद्य रसविशुद्धलड्डुकादि पुनरास्वाद्यत इति आस्वाधमेलाकनकोलादिकमिति भणितमेवंविधस्य चतुविधाहारस्य प्रत्याख्यानमुत्तमार्थप्रत्याख्यानमिति ।"
-जं. ग. 29-2-68/VII/ रामपतमल (१) दान से कदाचित् पापबन्ध भी सम्भव है
(२) निमित्त अकिंचित्कर नहीं है शंका-क्या दान से पुण्य के स्थान पर पाप भी हो सकता है ?
समाधान-मो. शा. अ. ७ सूत्र ३९ में कहा गया है कि विधि, द्रव्य, दाता और पात्र की विशेषता से दान के फल में विशेषता आ जाती है । जैसे भूमि आदि की विशेषता से उससे उत्पन्न हुए अन्न में विशेषता आ जाती है। एक ही प्रकार का बीज नाना प्रकार की भूमियों में बोने से फल में विशेषता हो जाती है (सर्वार्थ सिद्धि) जिसप्रकार ऊपर खेत में बोया गया बीज कुछ भी फल नहीं देता, उसीप्रकार अपात्र में दिया गया दान फलरहित जानना चाहिए । प्रत्युत किसी अपात्र-विशेष में दिया गया दान अत्यन्त दुःख का देनेवाला होता है, जैसे विषधरसर्प को दिया गया दूध तीव्रविषरूप हो जाता है वसु. श्रा. गा. २४२-२४३ । इन आगम प्रमाणों से सिद्ध है कि निमित्तों का प्रभाव कार्यों पर पड़ा करता है । निमित्तों को अकिंचित्कर मानना उचित नहीं है।
-गै.ग. 12-12-63/IX/प्रकाशचन्द
पात्र के लक्षण शंका-पात्र, कुपात्र और अपात्र के लक्षण क्या हैं ?
समाधान-सम्यग्दृष्टि पात्र है, मिथ्याष्टिद्रव्यलिंगीमुनि कुपात्र है । अविरतमिथ्यादृष्टि अपात्र है। अ. ग. श्रा. वशमपरि० श्लो. १.३९ ।
जो पुरुष रागादि दोषोंसे छुपा भी नहीं गया हो और अनेक गुणों से सहित हो वह पात्र है। जो पुरुष मिथ्याष्टि है, परन्तु मंदकषाय होने से व्रत, शीलादि का पालन करता है वह जघन्यपात्र है। व्रत, शीलादि की
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