Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
चर्मपात्रगतं तोयं, घृतं तैलं च वर्जयेत्।
नवनीतं प्रसनाविशाकं नाद्यात्कदाचन ॥६६॥ रत्नमाला पाक्षिकश्रावक भी चर्म के बर्तन में रक्खे हुए जल, घी, तेल इनका खाना त्याग देवे। मक्खन तथा फूल बाले शाकों को कदाचित् न खावे । जिस रोटी, दाल, पूरी, लडडू आदि में फूई आ जावे उसे न खावे ।
शृगवेरं तथानंगक्रीडा विल्वफलं सदा । पुष्प शाकं च संधानं नवनीतं च वर्जयेत् ॥३७॥ श्री देवनन्धी श्रावकाचार
अदरक, अनंगक्रीड़ा, बेल का फल, फूल, शाक (पत्तों का शाक), आचार-मुरब्बा, मक्खन का सदा त्याग कर देना चाहिये।
प्रश्नोत्तरश्रावकाचार सर्ग १७ श्लोक १०६ में भी मक्खन अनेक दोषों का उत्पन्न करने वाला होने से त्याज्य बतलाया है।
-ज. ग. 4-2-71/VII/ कस्तूपन्द
सैंधा नमक शंका-क्या पिसा हुआ सैंधा नमक एक मुहूर्त बाद सचित्त हो जाता है ?
समाधान-धवला पु० १ पृ. २७२ पर मूलाचार के आधार से नमक, पत्थर, सोना, चांदी, मूगा, भोडल प्रादि को प्रथिवीकायिक लिखा है। जिस प्रकार संगमरमर पत्थर का चूरा अचित्त हो जाने के पश्चात् पुनः सचित्त नहीं होता उसी प्रकार नमक पिस जाने पर प्रचित्त हो जाता है, वह अन्तमुहर्त बाद क्यों सचित्त हो जाएगा? ( मूगा, भोडल आदि भी अचित्त होने के बाद सचित्त हो जावेंगे ? ) यदि नमक में पानी का संयोग हो जावे तो सचित्त होना सम्भव है । यह मनमानी कल्पना है कि पिसे हुए नमक की मर्यादा एक मुहूर्त की है।
-पत्राचार 28-10-77/प्र.प्र.स , पटना प्याज-लहसुन अभक्ष्य हैं शंका-प्याज-लहसुन का खाना ठीक है या नहीं, अगर ठीक नहीं है तो किस युक्ति से, शास्त्र के प्रमाण सहित समाधान करें?
समाधाम-प्याज-लहसुन कन्द हैं जो अनन्तकाय हैं। प्याज कामोत्पादक है अतः इसका खाना ठीक नहीं कहा भी है
अल्पफलबहुविघातान्मूलकमााणि शृंगवेराणि । नवनीतनिम्बकुसुमं केतकमित्येवमवहेयम् ॥५॥ यवनिष्टं रावतयेद्यच्चानुपसेव्यमेतदपि जह्यात् ।।
अभिसन्धिकृता विरतिविषयाद्योग्यावतं भवति ॥८६।। २० क० श्रा० श्री पं० सदासुखदासजी ने इन श्लोकों की टीका में लिखा है-"जिनके सेवनतै फल जो अपना प्रयोजन मोतो अल्पसिद्ध होय अर जिनके भक्षणत घात अनन्त जीवनि का होय ऐसे मूलकन्द प्राद्रक शृगवेर इत्यादित कन्दमूल अर नवनीत जो माखन निंबका फूल, केवड़ा, केतकी का फूल इत्यादिक जे अनन्त काय ते त्यागने योग्य हैं। एक देह में अनन्त जीव ते अनन्तकाय हैं।"
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