Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
[६० रतनचन्द जैन मुख्तार !
__एक अंजनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर पर्वतों के शिखर पर उत्तम रत्नमय एक-एक जिनेन्द्र मंदिर स्थित हैं। पूर्व दिशा के समान ही दक्षिण, पश्चिम और उत्तर भागों में भी इसी प्रकार रचना है। विशेष इतना है कि इन दिशाओं में स्थित बापिकाओं के नाम भिन्न-भिन्न हैं। जैसे पश्चिम अंजन गिरि की पूर्वादिक दिशाओं में विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजित चार वापिकायें हैं। दक्षिण अंजनगिरि की चारों दिशाओं में अरजा, विरजा, अशोका, और वीतशोका चार वापिकायें हैं। उत्तर अंजनगिरि की पूर्वादिक दिशाओं में रम्या, रमणीया, सुप्रभा, और सर्वतोभद्रा नामक चार वापिकाएँ हैं।
-जं. ग. 1-5-75/VII/रो. ला. मित्तल सुदर्शनमेरु के उत्तर में जंबूवृक्ष तथा दक्षिण में शाल्मली वृक्ष है शंका-तीन लोक पूजा विधान पं० हेमचन्दजी कृत में जम्बू वृक्ष को स्थिति सुदर्शन मेर के उत्तर में व शाल्मली वृक्ष को स्थिति सुदर्शन मेरु के दक्षिण में बताई है किन्तु पं० टेकचन्दजी कृत तीनलोक पूजाविधान में जम्मूवृक्ष सुदर्शनमेरु के दक्षिण में और शाल्मली वृक्ष सुदर्शनमेह के उत्तर में बताया है। इन दोनों कथनों में कौनसा कथन ठीक है ?
समाधान-शाल्मली वृक्ष देवकुरु क्षेत्र के भीतर निषध पर्वत के उत्तर पार्श्वभाग में, विद्युत्प्रभ पर्वत से पूर्व दिशा में सीतोदा नदी की पश्चिम दिशा में और मन्दरगिरि ( सुदर्शन मेरु ) के नैऋत्य भाग में स्थित है। जम्बूवृक्ष मन्दर पर्यन्त ( सुदर्शन मेरु ) की ईशान दिशा में नीलगिरि के दक्षिण पार्श्व भाग में भौर माल्यवंत के पश्चिम भाग में सीता नदी के पूर्वतट पर स्थित है। तिलोयपण्णत्ती चौथा महाअधिकार गापा २१४६ व २१९४ । उत्तरकुरु के मध्य में सुदर्शन मेरु की उत्तर-पूर्व ( ईशान ) दिशा में महारत्नों के समूह से पिंजरित जम्बूवृक्ष है। जम्बूवीवपणती, छठा उद्देश्य, गाथा ५७ । सीता नदी के पूर्वतट पर, मेरु पर्वत ते ईशान दिशा में उत्तरकुरु भोग भूमि विर्षे जम्बूवृक्ष है; तथा सीतोदा नदी के पश्चिम तट पर, मेरु पर्वत ते नैऋत दिशा में देवकुरु भोगभूमि में । विष शाल्मली वक्ष है।( त्रिलोकसार गाथा ६३९ व ६५१ )। उत्तरकुरु के मध्य में मेरु की ईशान दिशा में सीता नदी और नील पर्वत के बीच में अनादि-प्रकृत्रिम-पृथ्वीकायिक जम्बूवृक्ष है ( वृहद व्यसंग्रह गाथा ३५ की टीका) इन मागम प्रमाणों से सिद्ध है कि सुदर्शन मेरु के उत्तर में जम्बूवृक्ष और दक्षिण में शाल्मली वृक्ष है।
-जं. सं. 8-1-59/V/ टी. प. जैन, पचेवर सूर्य द्वारा एक दिन में एक गली का पार होना
शंका-सूर्य को जम्बूद्वीप में गमन करने की १८३ गलियाँ हैं। उत्तरायण में ६ महीने होते हैं। बाह्य वीपी से अभ्यन्तर वीथी तक आने में एक सूर्य को ६ मास लगे। इस प्रकार एक सूर्य ने एक दिन में एक गली पार की किन्तु सूर्य की चाल को देखते हुए एक सूर्य को एक गली को पार करने में दो दिन लगने चाहिये।
समाधान-जम्बूद्वीप में दो सूर्य हैं और उन दोनों सूर्यों के चार क्षेत्र एक ही हैं अतः दोनों सूर्यो द्वारा एक गली एक दिन में पार हो जाती है। तिलोयपण्णत्ती में कहा भी है
जम्बूबीवम्मि दुवे विवायरा ताण एक्क चारमही । रविविवाधियपणसयबहत्तरा जोयणाणि तव्वासो ॥७॥२१७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org