Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान-३७७३ उच्छ्वासों का मुहूर्त होता है। एक समय कम का भिन्न मुहूर्त होता है। इससे भी एक समय कम का अन्तर्मुहूर्त होता है। इससे एक एक समय कम होता हुआ एक प्रावलिकाल तक अन्तर्मुहूर्त के नाना भेद होते हैं । ( धवल पुस्तक ३ पृ० ६६-६७ ) किन्तु प्रसंगवश अन्तर्मुहूर्त का यह काल असंख्यात-आवलि भी लिया गया है । (धवल पु० ७ पृ० २८९, २९४ ) अन्तमुहूर्त' में अन्तर शब्द का अर्थ समीपवर्ती करके मुहूर्त के समीपवर्ती काल से असंख्यात आवलिकाल भी ग्रहण कर लिया है (धवल पु० ३ पृ० ६९ ) यदि श्री वीरसेन आचार्य इस प्रकार अर्थ न करते ता सूत्र के अभिप्राय का यथार्थ ग्रहण न होता ।
-जै. ग. 30-5-63/1X/प्या. ला. बड़जात्या, अजमेर
श्रेणी, मान
प्राकाशश्रेणी में नहीं आने वाला एक भी प्रदेश नहीं है शंका-क्या ऐसा कोई आकाश-प्रदेश है, जो किसी भी श्रेणी में नहीं आता हो ?
समाधान-आकाश का कोई भी ऐसा प्रदेश नहीं है जो किसी भी श्रेणी में नहीं पाता हो। आकाश का प्रत्येक प्रदेश श्रेणि के अन्दर है। [ अभिप्राय इतना मात्र है कि किसी भी दृष्टि से एक भी श्रेणी में परिगणित नहीं हो, ऐसे आकाश प्रदेश का अभाव है।)
-पताचार 3-8-77/ज. ला जैन. भीण्डर
आकाशश्रेणी का अर्थ शंका-अनुणि गति होती है। आकाश की श्रेणी का क्या अभिप्राय है ? जीवों के मरण काल में भवान्तर संक्रम के समय तथा मुक्त जीवों के ऊर्ध्वगमन के समय अनुश्रोणि गति ही होती है। इसी तरह अवलोक से अधोलोक के प्रति या अधोलोक से ऊर्ध्वलोक के प्रति या तिर्यग्लोक से अधोलाक के प्रति या ऊर्ध्वलोक के प्रति जाना आना होता है, या पुद्गलों की लोकान्तप्रापिणी गति जब होती है तब नियम से अनुश्रेणी गति ही होती है। अन्यत्र नियम नहीं है । ( स० सि० २।२६ ) यहां श्रेणी से क्या अभिप्राय है, कृपया सुस्पष्ट करें? वहाँ प्रदत्त परिभाषा-"लोकमध्यादारभ्य ऊर्ध्वमधस्तिर्यक् च आकाशप्रदेशानां क्रमसनिविष्टानां पङक्तिः भेणिः इत्युच्यते" से स्पष्ट नहीं समझा हूँ। एक राजू अथवा घनाकाश में कियत्संख्यक श्रेणियाँ सम्भव हैं ?
समाधान-जैसे फर्श पर टाइलों की पंक्ति रहती है उसी प्रकार आकाश में प्रदेशों की पंक्ति है। श्रेणी का अर्थ पंक्ति अथवा लाइन ( Line) है। जिस प्रकार लाइन में Dots.......... होते हैं, उसी प्रकार जगत् श्रेणी में आकाश के प्रदेश होते हैं। एक Square Inch 0 वर्ग इंच में पूर्व पश्चिम और उत्तर-दक्षिण उतनी सीधी रेखायें ( Straight Lines ) खींची जा सकती है जितने एक इन्च में Dots होंगे। उसी प्रकार एक राजू में उतनी श्रेणियां होंगी जितने एक राजू में प्रदेश होंगे। एक राजू में प्राकाश-प्रदेश असंख्यात हैं, अतः श्रेणियाँ भी असंख्यात हैं ( यहाँ पर Digonal Line को Straight Line नहीं माना गया है, अतः Digonal ( विदिशा ) रूप श्रेणियां नहीं होती हैं ।
A_
B
इस चित्र में AC रूप श्रेणी नहीं होती है | AB या AD रूप पंक्तियाँ श्रेणी होती हैं।
-पदाचार अगस्त 77/ ज. ला. जैन, भीण्डर .
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