Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
उत्तरोत्तर अधिक राशि की वर्गशलाकाएँ भी बहुत होती हैं
शंका-धवल पु० ३ पृ. २४ के नीचे से दसवीं पंक्ति में लिखा है-"प्रथम वार वगित संगित राशि की वर्गशलाकाएं और तृतीय वार वगित संगित राशि की वर्गशलाकाओं की वर्गशलाकाएँ समान हैं।" सो कैसे? प्रथमवार वगित संगित को वर्गशलाकाओं की अपेक्षा तृतीयवार वगित संगित को बर्गशलाकाएँ अधिक होनी चाहिये।
समाधान—प्रथमबार वगित संगित राशि की वर्गशलाकाओं से ततीयबार वगित संगित राशि की वर्गशलाकाएँ अवश्य अधिक हैं, समान नहीं हैं, किन्तु तृतीयबार वगित संगित राशि की वर्गशलाकाओं की वर्गशलाकाएं और प्रथमबार वगित संगित राशि की वर्गशलाकाएँ समान हैं । प्रथमबार वगित संगित राशि की वर्गशलाकात्रों और ततीयबार गित संगित राशि की वर्गशलाकारों को परस्पर समान नहीं कहा गया है।
-जें. ग. 6-5-76/VIII/ ज. ला. जैन, भीण्डर
उत्कृष्ट संख्यात का स्वरूप
शंका-चर्चाशतक छंद ३३ में उत्कृष्ट संख्यात की गणना १५० अंक प्रमाण बताई है। इससे अधिक संख्या की संज्ञा असंख्यात है। यह कथन किस अपेक्षा किया गया है ?
समाधान-उत्कृष्ट संख्यात जानने के निमित्त जम्बूद्वीप के समान विस्तार वाले और एक हजार योजन प्रमाण गहरे चार गड्ड करना चाहिये । इनमें शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका ये तीन गड्ढ अवस्थित पौर चौथा अनवस्थित है। चौथे कुण्ड के भीतर दो सरसों डालने पर जघन्य संख्यात होता है। पुनः इस चौथे कुण्ड को सरसों से पूर्ण भर दो। इस सरसों से भरे हुए कुण्ड में से देव अथवा दानव हाथ में ग्रहण करके क्रम से द्वीप और समुद्र में एक-एक सरसों देता जाय । इस प्रकार जब वह कुण्ड समाप्त हुपा तब शलाका कुण्ड के भीतर एक सरसों डाला। जहां पर प्रथम कुण्ड की शलाकायें समाप्त हुई हों, उस द्वीप या समुद्र की सूची प्रमाण उस अनवस्थाकुण्ड को बढ़ा दें । पुनः उस सरसों से भरकर पहिले के ही समान हाथ में ग्रहण करके क्रम से आगे के द्वीप और समुद्र में एक-एक सरसों डालकर उन्हें पूरा कर दें। जिस द्वीप या समुद्र में इस कुण्ड के सरसों पूर्ण हो जावें उसकी सूची के बराबर फिर से उक्त कुण्ड को बढ़ावें और शलाका कुण्ड में एक अन्य सरसों डालें। इस प्रकार सरसों डालते डालते जब शलाका कुण्ड भरजावे तब एक सरसों प्रतिशलाका कुण्ड में डालना चाहिये । उपर्युक्त रीति से जब प्रतिशलाका कुण्ड भी भरजाय तब महाशलाका कुण्ड में एक सरसों डालें । इस प्रकार सरसों डालते डालते शलाका कुण्ड पूर्ण हो गये, प्रतिशलाका कुण्ड पूर्ण हो गये और महाशलाका कुण्ड भी पूर्ण हो गया। जिस द्वीप या समुद्र में शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका ये तीनों कुण्ड भरजावें उतने संख्यात द्वीप समुद्रों के विस्तार रूप
और एक हजार योजन गहरे गड्ढे को सरसों से भरदेने पर उत्कृष्ट संख्यात का अतिक्रमण कर यह जघन्य परीतासंख्यात प्राप्त होता है। उसमें से एक कम कर देने पर उत्कृष्ट संख्यात का प्रमाण होता है। यह प्रमाण १५० अंक से बहत बड़ा है। चर्चाशतक में 'डेढ़सौ थिति अच्छर वर' से स्वर्गीय पं० द्यानतरायजी का क्या अभिप्राय रहा है, कहा नहीं जा सकता।
-ज.सं. 8-1-59/V/टी.च.जन, पचेवर
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