Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द्र जैन मुख्तार : सुहपयडीण विसोही तिव्वो असुहाण संकिलेसेण। विवरीदेण जहण्णो अणुभागो सम्वपयडीणं ॥१६३॥ बादालं तु पसत्था घिसोहिगुणमुक्कडस्स तिवाओ। बासीदि अप्पसत्था मिच्छुक्कडसंकिलिटुस्स ॥१६४॥ ( गो० क० )
शुभ ( पुण्य ) प्रकृतियों का अनुभागबंध विशुद्धपरिणामों से उत्कृष्ट होता है। अशुभप्रकृतियों का उत्कृष्ट-अनुभागबंध संक्लेशपरिणामों से होता है । अशुभप्रकृतियों का जघन्यअनुभागबंध विशुद्धपरिणामों से होता है और शुभप्रकृतियों का जघन्यअनुभागबंध संक्लेशपरिणामों से होता है । पुण्यप्रकृतियाँ ४२ हैं। उनका उत्कृष्टअनुभागबंध उत्कृष्टविशुद्धता गुणवाले के होता है । पाप प्रकृतियाँ ८२ हैं, उनका उत्कृष्ट-अनुभागबंध उत्कृष्ट. संक्लेशरूप परिणामवाले के होता है।
प्रतः शंकाकार का यह लिखना, कि शुभपरिणामों से पुण्यप्रकृतियों में अधिक स्थितिबंध होता होगा, ठीक नहीं है।
-जे. ग. 6-7-72/1X/ र. ला. जन बध्यमान अनुभाग में अनुभाग निक्षेपण का विधान शंका-बध्यमान प्रथमनिषेक में जघन्यअनुभाग होता है। फिर उत्तरोत्तर अनुभाग-निक्षेपण विशेषाधिक होता हुआ चरम-बध्यमान-निषेकमें सर्वाधिक अनुभाग निक्षिप्त होता है । इसके अनुसार तो जघन्य निषेक में सब प्रकार के स्पर्धक नहीं मिल सकेंगे। इसी तरह चरमनिषेक में जघन्य आदि स्पर्धक नहीं मिल सकेंगे। अथवा अन्य कोई परिहार-सूचक विधान है। कृपया स्पष्ट करें।
समाधान-प्रत्येक निषेक में देशघाती तथा सर्वघाती; दोनों प्रकार के स्पर्धक होते हैं। ( महाबंध पु०४ २०२ तथा प्रस्ता० पृ० १६ ) यदि प्रथम निषेक में जघन्य अनुभाग और अन्तिमनिषेक में उत्कृष्ट अनुभागबन्ध स्वीकार किया जाय तो प्रथम निषेक में सर्वघाती-स्पर्धक और अन्तिम निषेक में देशघातीस्पर्धक नहीं होने से आगम से विरोध मायगा। अतएव प्रत्येक निषेक में भिन्न-भिन्न स्पर्धक होते हैं, ऐसा मानने में कोई बाधा नहीं दिखाई देती।
क्षपक-सूक्ष्मसाम्पराय के अन्तिमसमय में साता का सर्वोत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है। उसमें स्पर्धक-रचना भी होती है तथा बारहमुहूर्त प्रमाण निषेक-रचना भी होती है । किन्तु प्रत्येक निषेक में सर्वोत्कृष्ट अनुभाग पाया जाता है । शंका में जैसी व्यवस्था लिखी गई है वैसा मैं भी सुनता पाया हूं, किन्तु इसप्रकार का कथन आगम में मेरे देखने में नहीं आया।
-पत्राचार 25-11-78/ ज. ला जन, भीण्डर कषायाध्यवसाय स्थान [ कषायोदय स्थान ] तथा अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान का स्वरूप-भेद
शंका-कषायअध्यवसायस्थान और अनुभागबन्धअध्यवसायस्थान किन्हें कहते हैं ? कषायोदयस्थान और कषायअध्यवसायस्थान में क्या अन्तर है ?
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