Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
अर्थ - जो अनादि विस्रसा बन्ध है वह तीन प्रकार का है-धर्मास्तिक विषयक, अधर्मास्तिक विषयक और आकाशास्तिक विषयक ||३०|| यहाँ जीवास्तिक और पुद्गलास्तिक विषयक अनादि विस्रसम्बन्ध क्यों नहीं कहा ? नहीं कहा, क्योंकि उनकी अपनी गमन आदि क्रियाओं का धर्मास्तिक आदि के साथ अनादि से स्वाभाविक संयोग नहीं पाया जाता । यदि कहा जाय कि उनका प्रदेशबन्ध तो अनादि से स्वाभाविक है, सो यह बात भी नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा माना जायगा तो पुद्गलों में पुद्गलत्व नहीं बनेगा और पुद्गलों तथा जीव- प्रदेशों का भी संयोग-वियोग अनुभव सिद्ध है, अतः इनका अनादि विस्रसा बंध नहीं कहा है ।
-ज. ग. 6-4-72 / VII / अनिलकुमार
३६ पृथ्वियों के नाम एवं इनका अन्तर्भाव
शंका- ३६ प्रकार की पृथ्वियों के नाम बताने की कृपा करें। ये ३६ प्रकार की पृथ्वियां किस वर्गणा के अन्तर्गत आती हैं; क्योंकि २३ वर्गणाओं से व्यतिरिक्त पुद्गलों का तो जगत् में अभाव है ही ।
समाधान - छत्तीस प्रकार की पृथ्वियों के नाम -१ मिट्टी आदि पृथिवी २ बालू ( तिकोन - चोकोन रूप ) ३ शर्करा ४ गोल पत्थर ५ बड़ा पत्थर ६ समुद्रादिक कालवण ( नमक ७ लोहा ८ ताँबा ६ जस्ता १० सीसा ११ चाँदी १२ सोना १३ हीरा १४ हरिताल १५ इंगुल १६ मैनसिल १७ हरा रंग वाला सस्यक १८ सुरमा १६ मूंगा २० भोडल ( अबरक ) २१ चमकती रेत २२ गोरोचन वाली कर्केतन मणि २३ पुष्पवर्ग राजवर्तक मणि २४ पुलकवर्णमरिण २५ स्फटिक मणि २६ पद्मराग मणि २७ चन्द्रकान्त मणि २८ वैडूयं (नील) मरिण २९ जलकान्त मणि ३० सूर्यकान्त मणि ३१ गेरुवर्णं रुधिराक्षमणि ३२ चन्दनगन्ध मणि ३३ बिलाव के नेत्र समान मरकत मणि ३४ पुखराज ३५ नीलमणि तथा ३६ विद्रुमवर्णं वाली मरिण । ( धवल १ । २७२ तथा मू० आ० २०६ -२०७ )
ये सर्व पृथ्वि श्राहारवगंगा के अन्तर्गत ।
- पत्र 30-1-79 / न. ल१. जैन, भीण्डर
बर्फ जल धातुरूप है, पृथ्वीरूप नहीं
शंका- बर्फ जलधातुरूप है या पृथ्वीधातुरूप ?
समाधान — बर्फ जलधातुरूप है । ( धवल पु० १ कायमार्गणा प्रकरण जलकाय तथा मूलाचार की टीका ) - पत्र 8-1-79 / ज. ला. जैन, भीण्डर
पृथ्वी श्रादि चारों धातुओंों के लिए एक ही प्रकार का परमाणु कारण है
शंका- चार धातुओं ( पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ) के लिए भिन्न-भिन्न परमाणु कारण होते हैं या परमाणु एक ही प्रकार का है और जैसा बाह्य निमित्त मिलता है वह परमाणु उस धातुरूप परिणम जाता है ?
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समाधान - पंचास्तिकाय गाथा ७८ में श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने कहा है कि पृथ्वी आदि के लिये भिन्न-भिन्न जाति के परमाणु नहीं हैं । गाथा का शीर्षक इसप्रकार है
अथ पृथिव्यादि जातिभिन्नाः परमाणवो न सन्ति ।
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