Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान-मनुष्य व तिर्यञ्च मरकर चारों गतियों में उत्पन्न होते हैं। देव व नारकी मरकर केवल मनुष्य व तिर्यञ्च दो गतियों में उत्पन्न होते हैं, ऐसा स्वभाव है और स्वभाव में प्रश्न नहीं होता। यदि स्वभाव में भी प्रश्न होने लगे तो यह प्रश्न हो सकता है कि अग्नि गर्म क्यों है ?
यदि यह मान लिया जाय कि मनुष्य मरकर मनुष्य ही हो, देव मरकर देव ही हो, नारकी मरकर नारकी ही हो तो चतुर्गति भ्रमण का अभाव हो जाएगा। जो जीव नारकी और तिर्यञ्च हैं उनको कभी मनुष्य-पर्याय नहीं मिलेगी और वे तीन गतियों के जीव कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकेंगे। मनुष्य संख्यात हैं, उनके मोक्ष प्राप्त कर लेने पर अन्य गति के जीवों के मनुष्यों में उत्पन्न न होने से, मोक्षमार्ग का प्रभाव हो जाएगा। (तथा आगम से भी विरोध आता है।)
एक जीव हिंसा को त्यागकर अहिंसक हो जाता है । जो पुद्गल अन्धकार रूप परिणमन कर रहा था वही पुदगल दीपक या सूर्य आदि का निमित्त पाकर प्रकाशरूप परिणम जाता है। जब ज्ञान रागादि के त्याग स्वभाव रूप परिणमन करता है वह चारित्र है-रागादिपरिहरणस्वभावेन ज्ञानस्य भवनं चारित-समयसार गाथा १५५ टीका । छद्यस्थों के ज्ञानावरण कर्म के उदय के कारण 'अज्ञान' औदयिक भाव है। जितने अंशों में ज्ञान का अभाव है उसको अज्ञान अथवा जड़ कहते हैं। ज्ञानावरण कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने पर प्रज्ञान (जड़ ) का नाश होकर चेतन ( केवलज्ञान ) रूप परिणमन हो जाता है । जो पुद्गल परमाणु नीम व विषरूप हैं वे ही परमाणु काल पाकर पाम व अमृतरूप परिणम जाते हैं अतः इन दृष्टान्तों द्वारा भी शंकाकार के मत की सिद्धि नहीं होती है ।
-जं. सं. 5-7-56/VI/ र. ला. जैन, केकड़ी प्रेसठशलाका पुरुष को गत्यागति
शंका-वेसठ शलाका के पुरुष कौन जीव होते हैं ? पूर्व में कितनी किस प्रकार की योग्यता होनी चाहिए तथा आगामी काल में क्या ऐसे सब पुरुष शीघ्र मोक्षगामी होते हैं ।
समाधान-२४ तीर्थङ्कर, १२ चक्रवर्ती, ६ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ६ बलभद्र ( २४ + १२ +8+: +६= ६३ ) ये ६३ शलाका पुरुष होते हैं। कहा भी है -
चवीसवारतिघणं तित्थयरा छत्ति खंडभर हवई। तुरिए काले होंति हु तेवट्ठिसलागपुरिसा ते ॥८०३॥ ( त्रिलोकसार )
अर्थ-चौबीस तीर्थंकर और बारह षट्खंड-भरत के पति अर्थात् चक्रवर्ती और तीन का घन अर्थात् सत्ताईस त्रिखंड-पति अर्थात् नवनारायण, नव-प्रतिनारायण, नव-बलभद्र ऐसे ये त्रेसठ शलाका पुरुष चौथे काल में होते हैं।
जो पूर्वभव में मनुष्य या तिर्यच, नीचे की चार पृथ्वियों के नारकी, भवनवासी देव, वानव्यन्तर देव व ज्योतिषी देव ये मरकर त्रेसठ शलाका पुरुष नहीं होते। प्रथम तीन पृथ्वी के नारकी तीर्थकर हो सकते हैं, किन्तु चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनारायण व बलभद्र नहीं होते। सौधर्म मादि स्वर्गों से आकर प्रेसठ शलाका पुरुष होते हैं । ( धवल पृ. ६ पृ. ४८४-५०० )
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