Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : ___ अर्थ-इस क्षेत्र में बहुत काल तक बहुत प्रकार के वैराग्य को भाकर संयम से युक्त मुनि लोकांतिक देव होते हैं ॥६४६।। जो सम्यग्दृष्टि मुनि स्तुति और निन्दा में सुख और दुःख तथा बन्धु और रिपु वर्ग में समान है वही लोकांतिक होता है ।। ६४७ ।।
-णे. ग. 19-9-66/IX/र. ला. जन, मेरठ पंचम काल के मुनि प्रच्युत स्वर्ग तक जाते हैं शंका-पंचमकाल के भावलिंगी मुनि उत्कृष्ट से उत्कृष्ट कितने स्वर्गों तक जा सकते हैं? एवं द्रव्यलिंगी शुद्ध व्यवहार चारित्र को पालन करने वाले मुनि उत्कृष्ट से उत्कृष्ट कितने स्वर्ग तक जा सकते हैं ? .
समाधान-भरतक्षेत्र आर्यखंड पंचमकाल में अन्त के तीन संहनन ( सुपाटिकासंहनन, कीलितसंहनन और अर्धनाराचसंहनन ) होते हैं । कहा भी है
"चउत्थे पंचम छ? कमसो छत्तिगेक्क संहरणी ॥८॥" श्री नेमिचन्द्र सिद्धांत विरचित कर्मप्रकृति
सपाटिका संहनन वाले जीव स्वर्ग में चौथे युगल तक उत्पन्न हो सकते हैं। कीलित संहनमवाले जीव छट्टे युगल तक और अर्धनाराच संहननवाले जीव पाठवें युगल तक उत्पन्न हो सकते हैं । गो. क. गाथा २९ ।
पंचमकाल में अर्धनाराचसंहनन तक हो सकता है। अतः जिन मुनियों के अर्धनाराच संहनन है वे भावलिंगी या द्रव्यलिंगी मुनि उत्कृष्ट से उत्कृष्ट सोलहवें स्वर्ग तक उत्पन्न हो सकते हैं ।
-. ग. 4-4-63/lX/ अमृतलाल पारखी चक्रवर्ती की पटरानी के नरक जाने का नियम नहीं शंका-चक्रवर्ती की पटरानी कौन से नरक में जाती है ? उसके नरक जाने का नियम है या नहीं ?
समाधान-चक्रवर्ती की पटरानी के नरक जाने का कोई नियम नहीं। यदि वह नरक जाती है तो छठे नरक तक जा सकती है । कहा भी है-"पंचम खिदि परियंत सिंहो इस्थि विछट्ट खिदि अंतं ।"
सिंह पांचवें नरक तक उत्पन्न हो सकता है, स्त्री छठी पृथ्वी ( छठे नरक ) तक उत्पन्न हो सकती है। स्त्री छठे नरक से आगे नहीं जा सकती।
-जें. ग. 16-3-78/VIII/ र. ला. जन मेरठ शंका-क्या चक्रवर्ती की पटरानी नरक में ही जाती है ?
समाधान-चक्रवर्ती की पटरानी नरक में ही जाती है ऐसा कोई नियम नहीं है। अपने परिणामों के अनुसार चारों गतियों में जा सकती है। यह सब किंवदन्ती है कि तन्दुलमत्स्य तथा चक्रवर्ती की पटरानी नरक में ही जाते हैं। किसी भी पागम में ऐसा नियम नहीं लिखा।
--पत्राचार 28-10-77/ब. प्र. सरावगी, पटना
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