Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ५६६ म्लेच्छखण्डोत्पन्न मनुष्य मोक्ष में नहीं जा सकता शंका-क्या म्लेच्छ खण्ड का उत्पन्न हुआ मनुष्य सकल संयम ग्रहण कर सकता है ? क्या वह मोक्ष जा सकता है ?
समाधान-सर्व म्लेच्छ खण्डों में मिथ्यात्व गुणस्थान रहता है। कहा भी है"सव्य मिलिच्छम्मि मिच्छत्तं ।" ति० ५० सब म्लेच्छ खण्डों में एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही रहता है ।
यदि म्लेच्छखण्ड का उत्पन्न हुआ मनुष्य प्रार्यखण्ड में प्रा जावे तो वह सकल संयम धारण कर सकता है।
"म्लेच्छभूमिज मनुष्याणां सकल संयम ग्रहणं कथं संभवतीति नाशंकितध्यं दिग्विजयकाले चक्रवर्तिना सह आर्यखण्डमागतानां म्लेच्छराजानां चक्रवादिभिः सह जातवैवाहिक संबन्धानां संयमप्रतिपत्तेरविरोधात् ।'
-ल० सा० पृ० २४९
कोऊ आशंका करे कि म्लेच्छ खंड का उपज्या मनुष्य के सकल संयम कैसे संभवे ? ऐसी शंका ठीक नहीं है, क्योंकि दिग्विजय के समय जो म्लेच्छखंड के मनुष्य चक्रवर्ती के साथ आर्यखण्ड विर्ष आवे भौर तिन से चक्रवर्ती आदि के विवाह आदि सम्बन्ध पाइए है तिनके सकल संयम होने में कोई विरोध नहीं है।
म्लेच्छखण्ड का मनुष्य जब प्रार्यखण्ड में आ जाता है और यहाँ पर उसके विवाह आदि सम्बन्ध हो जाते हैं तो उसके संस्कार कुछ बदल जाते हैं और वह मुनि दीक्षा ग्रहण के योग्य हो जाता है, किन्तु उसके परिणामों में इतनी विशुद्धता नहीं आती है कि वह क्षपक श्रेणी प्रारोहण कर सके, इसीलिये वह उसी भव से मोक्ष नहीं जा सकता है।
-जें. ग. 30-7-70/VIII/ शास्व सभा, रेवाड़ी
शंका-म्लेच्छ खण्ड की कन्या जिसका विवाह चक्रवर्ती से हो जाता है क्या उससे उत्पन्न हुई सन्तान मोक्ष जा सकती है?
समाधान-इस विषय में स्पष्ट उल्लेख मेरे देखने में नहीं पाया, किन्तु उनके मोक्ष जाने में कोई बाधा नहीं आती, क्योंकि वे आर्य हैं तथा आर्यक्षेत्र में उत्पन्न हुए हैं।
-पनावार 3-8-60/ब. प्र. सरावगी, पटना मनुष्य तेजस्कायिक व वायुकायिक में भी जाते हैं शंका-चौबीस ठाणा में लिखा है कि मनुष्य तेजकाय वायुकाय में उत्पन्न नहीं होता है । क्या कारण है?
समाधान-मनुष्य मरकर तेजकायिक और वायुकायिक में भी उत्पन्न होते हैं । कहा भी है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org