Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ५९३ ___ इन सठ शलाका पुरुषों में से चौबीस तीर्थकर तो तद्भव मोक्षगामी होते हैं शेष निकट भव्य होते हैंकहा भी है
तिस्थयरा तग्गुरको चक्कीबल केसिरहणारहा । मंगजकलयरपूरिसा भविया सिझति णियमेण ॥१४७३॥ ति० १० अ०४
अर्थ-तीर्थकर, उनके माता पिता, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, प्रतिनारायण, रुद्र, नारद, कामदेव, कुलकर ये सब भव्य होते हुए नियम से सिद्ध होते हैं ।
-जे'. ग. 4-7-66/1X/र. ला.जैन, मेरठ सम्यक्त्वो मनुष्य विदेह क्षेत्र में नहीं जाता शंका-भरत क्षेत्र का मनुष्य किस भाव से ( मिथ्यात्व भाव से या सम्यक्त्व भाव से ) विदेह क्षेत्र को मनुष्यायु का बंध करता है और किस भाव से मरकर विदेह क्षेत्र में उत्पन्न होता है ?
समाधान-सम्यग्दष्टि मनुष्य के तो मनुष्यायु का बंध नहीं हो सकता क्योंकि तत्त्वार्थसूत्र अध्याय ६ में 'सम्यक्त्वं च सूत्र द्वारा यह कहा गया है कि सम्यग्दर्शन देवायु के बंध का कारण है, इसलिये सम्यग्दृष्टि मनुष्य के देवायु का ही बंध होता है। क्षयोपशम-सम्यग्दृष्टि मनुष्य मर कर देव गति को ही जाता है, अन्य गति को नहीं जाता है । कहा भी है
एक्कं हि बेव देवदि गच्छति । षोडागम १, ९-९
अर्थात-संख्यात वर्षायुष्क ( कर्म-भूमिया ) सम्यग्दृष्टि मनुष्य एक देव गति को ही जाता है। मिथ्यात्व भाव से मर कर मनुष्य विदेह क्षेत्र में मनुष्य उत्पन्न होता है ।
-जै. ग. 24-7-67/VII/ज. प्र. म. कु. भरत क्षेत्र का मिथ्यादृष्टि मर विदेहक्षेत्र में जा सकता है शंका-मनुष्य कौन से कर्म करे जिससे भरत क्षेत्र का मनुष्य मर कर विवेह क्षेत्र में मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर सके, क्योंकि वर्तमान में विदेह क्षेत्र का मनुष्य संयम धारण कर मोक्ष जा सकता है । भरत या ऐरावत क्षेत्र का मनुष्य मोक्ष नहीं जा सकता है।
समाधान-भरत क्षेत्र का सम्यग्दृष्टि मनुष्य तो मर कर विदेह क्षेत्र में मनुष्य नहीं हो सकता है, इसी प्रकार विदेह क्षेत्र का सम्यग्दृष्टि मनुष्य भी मर कर भरत या ऐरावत क्षेत्र का मनुष्य नहीं हो सकता, क्योंकि मनुष्य या तियंचों के सम्यग्दर्शन से मात्र देवायु का ही बंध होता है । ऐसा "सम्यक्त्वं च ॥२१॥" त० सू० के द्वारा कहा गया है।
जिन्होंने मिथ्यात्व अवस्था में मनुष्यायु का बन्ध कर लिया था और उसके पश्चात् उनको सम्यग्दर्शन हो गया है ऐसे कर्मभूमिया मनुष्यों का यदि सम्यक्त्व सहित मरण होता है तो वे भोगभूमि के मनुष्यों में उत्पन्न होंगे; विदेह मादि की कर्मभूमि के मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होंगे।
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