Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
जिस प्रकार भूतकाल अनादि होने से उसका आदि किसी के द्वारा नहीं जाना जा सकता अथवा ग्राकाश द्रव्य अनन्त होने से उसका अन्त किसी के द्वारा नहीं जाना जा सकता है। प्रत्येक सिद्धः सादि होने पर भी प्रथम सिद्ध या अन्तिम सिद्ध किसी के द्वारा जाना नहीं जा सकता है। उसी प्रकार अकालमरण का मरणकाल व्यवस्थित न होने से वह भी नहीं जाना जा सकता है। जैसा जिसका स्वरूप होता है वैसा ही सम्यग्ज्ञान के द्वारा जाना जाता है। जीव अनन्त हैं तो सम्यग्ज्ञानी उनको अनन्तरूप से ही जानता है, सर्व जीवों को जानकर उनको सान्त रूप से नहीं जानता है, यदि सान्त रूप से जाने तो वह ज्ञान सम्यग्ज्ञान नहीं होगा। ज्ञेयों का परिणमन ज्ञान के आधीन नहीं है किन्तु अंतरंग बहिरंग निमित्ताधीन है, जैसा कि ऊपर के श्लोक में श्री कुलभद्राचार्य ने कहा है।
-. ग./27-11-69/VII/ब्र. सच्चिदानन्द
अकालमरण-मीमांसा
प्रश्न-अपमृत्यु अर्थात् अकालमरण नहीं है, क्योंकि प्रागम में इसका उपदेश नहीं पाया जाता। क्या यह ठीक नहीं है?
उत्तर-संसारी जीव दो प्रकार के हैं। १. सोपक्रमाथुष्क जीव और २. निरुपक्रमायुष्क जीव (धवल पुस्तक १० पृ० २३३-३४ )। जिन जीवों का अकालमरण ( अपमृत्यु ) संभव है वे सोपक्रमायुष्क जीव हैं और जिन जीवों का अकाल-मरण संभव नहीं है वे निरुपक्रमायुष्क जीव हैं।
श्री तत्त्वार्थसूत्र अध्याय २ सूत्र ५३ में निरुपक्रमायुष्क जीवों का उल्लेख है । वह सूत्र इस प्रकार हैऔपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ।
अर्थ- उपपाद जन्मवाले, चरमोत्तम देहवाले और असंख्यात वर्ष की आयु वाले जीव अनपवयं आयु वाले ( निरुपक्रमायुष्क ) होते हैं ।
इस सूत्र की टीका में महान् तार्किक आचार्य श्री विद्यानन्दि लिखते हैं कि इस सूत्र की सामर्थ्य से यह सिद्ध हो जाता है कि औपपादिक आदि के अतिरिक्त जो अन्य संसारी जीव हैं वे अपवयं आयु वाले ( सोपक्रमायुष्क ) होते हैं।'
श्री पूज्यपाद आचार्य कहते हैं कि इन औपपादिक आदि जीवों की आयु बाह्य निमित्त से नहीं घटती, यह नियम है, तथा इनसे अतिरिक्त शेष जीवों का ऐसा कोई नियम नहीं है अर्थात् बाह्य कारण मिलने पर आय घट जायगी। यदि कारण नहीं मिलेंगे तो आयु नहीं घटेगी।'
___ श्री भास्करनन्दि आचार्य भी कहते हैं कि इस ५३ वें सूत्र की सामर्थ्य से यह भी सिद्ध हो जाता है कि औपपादिक से जो अन्य संसारी जीव हैं उनकी अकालमृत्यु भी होती है।
१. 'सामर्थ्यतस्ततोन्येषामपवयं श्लोकवार्तिक पृ० ३४३ । 2. "न ह्यषामोपपादिकादीनां बाह्यनिमित्तकादायुरपवर्त्यते इत्ययं नियमः इतरेषामनियमः।"
सर्वार्थसिद्धि सूत्र ५३! 3. 'तेभ्योऽन्ये तु संमारिणः सामर्थ्यादपवायुषोऽपि भवन्तीति गम्यते ।'
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