Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ५७१ "यद्भवति तद्भवति, यथा भवति तथा भवति, येन भवति तेन भवति, यदा भवति तदा भवति, यस्य भवति तस्य भवति, इति नियतिधावः।" (पंचसंग्रह पृ० ५४७ )
यवा यथा यत्र यतोऽस्ति येन यत, तदा तथा तत्र ततोऽस्ति तेन तत् । स्फुटं नियत्येह नियन्त्रमाणं,
परो न शक्तः किमपीह कर्तुम् ॥३१२॥ ( श्री अमितगतिः पंचसंग्रह) जत्तु जवा जेण जहा, जस्स य णियमेण होदि तत्तु तवा ।
तेण तहा तस्स हवे, इदि वादो णियविवादो दु॥८८२ ॥ (गो० क०) जो होना होता है वही होता है। जैसा होना है वैसा ही होता है। जिसके द्वारा होना है उसी के द्वारा होता है। जब होना है तब ही होता है, यह नियतिवाद है।
जब जैसे जहाँ जिस हत से जिसके द्वारा जो होना है तभी तैसे ही वहाँ ही उसी हेतु से उसी के द्वारा वह होता है। यह सर्व नियति के आधीन है। दूसरा कोई कुछ भी नहीं कर सकता है । अर्थात् यह सर्व क्रमबद्ध पर्याय के आधीन है। दूसरा कोई कुछ भी नहीं कर सकता ।
जो जिस समय जिससे जैसे जिसके नियम से होता है, वह उस समय उससे वैसे ही उसके ही होता है, ऐसा नियम से ही सब वस्तु को मानना उसे नियतिवाद कहते हैं।
श्री सर्वज्ञदेव ने जिस नियतिवाद को स्पष्ट रूप से परमत अर्थात् एकांत मिथ्यास्व कहा है उस एकांत नियतिवाद का पोषण स्वामी कार्तिकेय के द्वारा होना असम्भव है, क्योंकि स्वामी कार्तिकेय महानाचार्य थे, उनको सर्वज्ञवाक्य पर पूर्ण श्रद्धा थी, वे यूक्ति के बल पर भी सर्वज्ञवाक्य के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं लिख सकते थे। स्वामी कातिकेय ने निम्नलिखित गाथाओं द्वारा अनेकान्त का कथन किया है
संति अणंताणंता तीसु वि कालेसु सव्व बब्वाणि । सव्वं पि अयंतं तत्तो भणिवं जिणेदेहि ॥ २२४ ॥ जं वत्थ अयंतं तं चिय कज्जं करेदि णियमेण । बहु-धम्म-जुवं अत्थं कज्ज-करंदीसदे लोए ॥ २२५ ॥ सम्वं पि अरणेयंतं परोक्ख-रूवेण जे पयासेवि । तं सुयणाणं भणदि संसय-पहुदीहि परिचत्तं ॥ २६२ ॥ णाणा धम्मजुदं पि य एवं धम्म पि वुच्च दे अत्यं । तस्सेयविवक्खादो णस्थि विवक्खाहसेसाणं ॥२६४ ॥ जो तच्चमणेयंतं णियमा सहहवि सत्तभंगेहि । लोयाण पण्ह-वसवो ववहार पवत्तणटुं च ॥ ३११॥ जो आयरेण मण्णवि जीवाजीवावि णव-विहं अत्यं । सुवणारेण एहि य सो सट्ठिी हवे सुद्धो ॥ ३१२॥
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