Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ ५७७
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
यह सब नियत है, दूसरा कोई कुछ भी नहीं कर सकता।' वह नियतिवादी पर मत अर्थात् गृहीत मिध्यादृष्टि है । अतः द्वादशांग रूप सर्वज्ञवारणी से विरोध का दूषण आ जायगा ।
२३ - सर्वज्ञदेव ने अकालमरण का कथन करते हुए यह कहा है कि अपमृत्यु का समय नियत नहीं है, जैसा कि पहले आर्ष ग्रन्थों के आधार पर सिद्ध किया जा चुका है। यदि सब जीवों के मरण का काल नियत माना जाएगा तो सर्वज्ञदेव के प्रकालमरण के कथन से विरोध का दूषण आ जाएगा ।
४ - सर्वथा नियति मानने से लक्ष्मी तो अपने नियत काल और नियत कारणों से मिलेगी, किन्तु गाया ३२० में धर्म पुरुषार्थ से लक्ष्मी मिलती है ऐसा कहा गया है। इन दोनों उपदेशों में परस्पर विरोध का दूषण आ जाएगा ।
५ - सर्वज्ञदेव ने नियतिनय-अनियतिनय, कालनय अकालनय इस प्रकार परस्पर विरोधी नयों का उपदेश दिया है । सर्वथा नियति मानने से सर्वज्ञदेव के इस उपदेश से विरोध का दूषण आ जाएगा ।
६ - सर्वज्ञदेव ने क्रम धौर अक्रम ( नियति ओर अनियति ) पर्यायों का कथन किया है और पर्यायों को इसी रूप से देखा है । क्योंकि जिनेन्द्र अन्यथावादी नहीं होते । यदि पर्यायों को सर्वथा नियत ( क्रमबद्ध ) माना जाय तो सर्वज्ञ के ज्ञान और सर्वज्ञ की वाणी दोनों से विरोध का प्रसंग आ जायगा ।
७- श्री सर्वज्ञदेव ने अनेकान्त रूपी मूल सिद्धांत का उपदेश अपनी दिव्यध्वनि द्वारा दिया है । यदि सर्वथा नियति को माना जावे तो सर्वज्ञकथित अनेकान्त से विरोध आता है ।
८ - श्री सर्वशदेव ने 'सर्व प्रतिपक्ष सहित हैं' ऐसा उपदेश दिया है जिसको श्री वीरसेन स्वामी ने धबल ग्रंथ में तथा श्री कुन्दकुन्द भगवान ने पंचास्तिकाय में गुथित किया है। जैसे भव्य है तो उसका प्रतिपक्षी अभव्य अवश्य है । यदि मुक्त पर्याय है तो उसकी प्रतिपक्षी बंध पर्याय ( संसार पर्याय ) अवश्य है, यदि शुद्ध पर्याय है तो उसकी प्रतिपक्षी अशुद्ध पर्याय है । यदि नियत पर्याय है तो उसकी प्रतिपक्षी अनियत पर्याय अवश्य है । यदि प्रतिपक्षी का सद्भाव नहीं तो उसका भी सद्भाव नहीं है । सर्वथा नियति के मानने पर अनियति का अभाव हो जाएगा और नियति के अभाव से नियति का सद्भाव भी सिद्ध नहीं हो सकता । इस प्रकार सर्वथा नियति मानने पर श्री सर्वज्ञदेव कथित 'सर्व सप्रतिपक्ष' सिद्धांत से विरोध आता है ।
६ - स्वामिकार्तिकेयातुप्र ेक्षा की गाथा ३२३ में यह नहीं कहा गया है कि सर्वज्ञदेव ने जब देखा है तब सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होगी, किन्तु जब नव पदार्थ, छह द्रव्य भादि का श्रद्धान कर लेगा उस समय सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होगी । सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के लिये कोई काल नियत है, ऐसा नहीं कहा ।
'राजवार्तिक' में 'यदि उपदेश द्वारा नियत काल से पूर्व मोक्ष हो जाय तो अधिगमज सम्यक्त्व हो सकता है । किन्तु ऐसा सम्भव नहीं । अतः अधिगमज सम्यक्त्व का अभाव है" इस शंका के उत्तर में श्री सर्वज्ञ के उपदेशानुसार इस प्रकार कहा गया है
"यतो न भव्यानां कृत्स्नकर्म निर्जरापूर्वकमोक्षकालस्य नियमोऽस्ति । यदि हि सर्वस्य कालो हेतुरिष्टः स्यात्, बाह्याभ्यन्तर कारणनियमस्थ दृष्टस्येष्टस्थ वा विरोधः स्यात्
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