Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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समाधान - राजा श्रेणिक को क्षायिक सम्यग्दर्शन उत्पन्न हो गया था और सम्यग्दृष्टि के नरकायु का बंध नहीं हो सकता, क्योंकि नरकायु की बंध व्युच्छिति प्रथम गुणस्थान में हो जाती है । अतः राजा श्रेणिक के नरकायु का बंध सम्यक्त्वोत्पत्ति से पूर्व हो चुका था । राजा श्रेणिक का अकाल मरण नहीं हुआ है, क्योंकि परभव को श्रायु बंध होने के पश्चात् प्रकाल मरण नहीं होता है । कहा भी है
" पर भवियआउए बद्ध पच्छा भुंजमाणाउअस्स कदलीघादो णत्थि जहासरूवेण चैव वेदेदित्ति । ध. १०।२३७ ॥ परभव सम्बन्धी आयु के बंधने के पश्चात् भुज्यमान आयु का कदली घात नहीं होता, किन्तु वह जितनी थी उतनी का ही वेदन करता है ।
-जै. ग. 3-12-70/X/ रोशनलाल
मरणकाल की व्यवस्था
शंका - मृत्यु काल जन्म से ही व्यवस्थित हो जाता है, या बाद में कभी होता है ? यदि पहिले ही होता है तो जिन जीवों का मृत्युकाल अध्यवस्थित है उनका अकालमरण होगा । यदि अकालमरण के निमित्तभूत बाह्य कारण न मिलें तो कालमरण भी हो सकता है ? यदि बाद में व्यवस्थित होता तो फिर देव नारकियों का कैसे होता है ? उनका जन्म से व्यवस्थित होना चाहिये ?
समाधान -- तत्वार्थ सूत्र अध्याय २ सूत्र ५३ में कहा है कि औपपादिक ( देव नारकी), चरम शरीरी और असंख्यात वर्ष आयु वाले ( भोगभूमिया ) की आयु विष-शस्त्र आदि विशेष बाह्य कारणों से ह्रस्व ( कम ) नहीं होती, इसलिये ये अनपवत्यं श्रायु वाले हैं। इनका मरण जन्म से ही व्यवस्थित है । इसी सूत्र की सामर्थ्य से यह भी सिद्ध होता है कि इनके अतिरिक्त अन्य संसारी जीवों ( कर्मभूमिया मनुष्य व तियंच ) की आयु, विष शस्त्र आदि विशेष बाह्य कारणों से, ह्रस्व ( कम ) भी हो सकती है इसलिये वे अपवर्त्य श्रायु वाले भी हैं ।
"तेभ्योऽन्ये तु संसारिणः सामर्थ्यादपवर्त्यायुषोऽपि भवन्तीति गम्यते ।" ( सुखानुबोध टीका )
"यथेतेषामपवर्त्य ह्रस्वमायुर्न भवति तह अर्थादन्येषां विष- शस्त्रादिभिरायुरुवीरणास्रफलावि बद्द भवतीति तात्पर्यार्थः || ” ( तत्वार्थवृत्ति टीका )
कर्मभूमिया मनुष्य व तियंचों का मरण यदि विष शस्त्र आदि बाह्य विशेष कारणों से होता है तो उनका अकाल मरण होता है और वह मृत्युकाल व्यवस्थित न होकर विष शस्त्र आदि की सापेक्षता से उत्पन्न हो जाता है । ( श्लोकवार्तिक अध्याय २ सूत्र ५३ ) ।
- जै. ग. 19-12-66 / VIII / र. ला. जैन
क्या कालमररण स्वेच्छामरण है ?
शंका- क्या कवलीघात-मरण ( अकाल मरण ) का यह अर्थ है कि जो स्वेच्छा से विष आदि व शस्त्र आदि के द्वारा मरण हो वह अकाल मरण है, शेष सब काल मरण है ?
समाधान- यदि आयु पूर्ण होने से पूर्व, स्वेच्छा से या स्वेच्छा के बिना शस्त्र आदि घात से या अन्य किन्हीं कारणों से भुज्यमान आयु का हास होकर मरण होता है, तो वह अकाल मरण है अर्थात् कदलीघात मरण है । आयु पूर्ण होने पर जो मरण होता है वह स्वकाल मरण है ।
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