Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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आचार्य रचित न होने से प्रागम की कोटि में नहीं हैं। गोम्मटसार व राजवातिक महान् आचार्यों द्वारा रची गई हैं अतः आगम हैं और प्रामाणिक हैं।
-जं. सं. 4-12-58/V/रा. दा. कराना विभिन्न शरीरों को हेतुभूत वर्गणाएँ शंका-यदि औदारिक शरीर पृथ्वी जल वायु और अग्नि इन चार धातुओं से बना है तो वैक्रियिक और आहारकशरीर किन-किन धातुओं से बने हैं। तेजस और कार्मणशरीर किस धातु से निर्मित हैं ? सप्तधातु रहित शरीर से क्या प्रयोजन है ?
समाधान-औदारिक, वैक्रियिक और आहारक ये तीन शरीर आहारवर्गणा से बनते हैं। कहा भी हैओरालिय-वे उग्विय-आहारसरीर-पाओग्गपोग्गलक्खंधाणं आहारदब्ववम्गणा त्ति सष्णा-धवल पु० १४ पृ० ५९ । औदारिक, वैक्रियिक और आहारकशरीर के योग्य पुद्गल स्कन्धों की संज्ञा आहारवर्गणा है। आहार द्रध्यवर्गणा पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु इन चार धातुमयी है अतः वैक्रियिक व आहारक शरीर भी इन चार धातुओं से बने हैं। तेजसशरीर व कार्मण शरीर आहार वर्गणाओं से निर्मित नहीं हए, किन्तु तैजसवर्गणा व कार्मणवर्गणा से बने हैं अतः ये दो शरीर पृथ्वी आदि चार धातुओं में से किसी भी धातु से निर्मित नहीं हुए हैं। 'सप्तधातु से रहित शरीर' से प्रयोजन सप्त कुधातु ( अस्थि रुधिर मांस आदि ) से रहित शरीर से है ।
-पतावार/ज. ला. जैन, भीण्डर औदारिक शरीर के निरन्तर बन्ध के स्वामी समी एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय हैं
शंका-धवल पु०५० ४७ हिन्दी पंक्ति ११-१२ में तेजकाय वायकाय में औदारिकशरीर का निरंतर बंध कहा है। शेष तीन स्थावरों में औदारिकशरीर के निरंतर बन्ध का कथन क्यों नहीं किया है? वे भी तो स्वर्ग नरक नहीं जाते हैं।
समाधान-धवल पु०८ पृ० ४७ हिन्दी पंक्ति बारह में पाठ छूटा हुआ है। "सर्व देव नारकी तथा सर्व एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक जीवों में निरंतर बन्ध पाया जाता है," ऐसा पाठ होना चाहिये था। मूल में भी इसी के अनुसार त्रुटित पाठ को कोष्टक में लिख लेना चाहिये । एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पृथ्विीकायिक, जलकायिक. वनस्पति कायिक जीवों के भी निरंतर प्रौदारिकशरीर का बन्ध होता रहता है, क्योंकि प्रतिपक्ष प्रकृति के बन्ध का अभाव है।
-जं. ग. 20-4-72/IX/ यशपाल तीर्थकर भगवान का शरीर सप्तधातु रहित नहीं होता शंका-तीर्थकर भगवान के जब निहार नहीं होता तब धातु रहित शरीर से सन्तानोत्पत्ति कैसे संभव है?
समाधान--तीर्थकर भगवान के मल-मूत्र का निहार नहीं होता, किन्तु उनका शरीर धातु रहित नहीं होता। यदि तीर्थंकर भगवान का शरीर सप्त धातु रहित मान लिया जावे तो अस्थि का अभाव होने से वववृषभ
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