Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार : ।
खत्म होने के पश्चातू कोई रोक नहीं सकता। यह व्यवहार किस आधार पर है बताने की कृपा करें।
समाधान-उस भव के शरीर में अर्थात् उस भव में रोके रखना आयुकर्म का कार्य है । कहा भी है
पडपडिहारसिमज्जाहलि, चित्त कुलाल भंडयारीणं ।
जह एदेसि भावा तहवि य कम्मा मुरण्यत्वा ॥२१॥ (गो. क.) इस गाथा में आयकर्म के स्वभाव के लिये हलि अर्थात् काठ के यंत्र का दृष्टान्त दिया गया है। जैसे काठ का यंत्र पुरुष को अपने स्थान में स्थित रखता है दूसरी जगह नहीं जाने देता, ठीक उसी प्रकार आयुकर्म जीव को मनुष्यादि पर्यायों में स्थित रखता है दूसरे भव में नहीं जाने देता।
"तस्स आउअस्स अत्थितं कुदोवगम्मदे ? देहदिदि अण्णहाणुववत्तीदो।" (धवल पु. ६ पृ. १२)
अर्थ-उस आयुकर्म का अस्तित्व कैसे जाना जाता है ? देह की स्थिति अन्यथा हो नहीं सकती है, इस अन्यथानुपपत्ति से आयुकर्म का अस्तित्व जाना जाता है ।
जितनी आयु शेष है उससे पूर्व मरण नहीं हो सकता है ऐसा एकान्त नियम नहीं है । विष, शस्त्रघात आदि के द्वारा उससे पूर्व मरण भी सम्भव है।
-जं. ग. 17-7-69/....... | रो. ला. मित्तल स्त्री-पुत्र आदि इष्ट की प्राप्ति सातावेदनीय के उदय एवं
लाभान्तराय के क्षयोपशम से होती है। शंका-दुनिया के प्राणी को जो स्त्री-पुत्र धन मकान आदि बाह्य सामग्री का संयोग या वियोग होता है उसमें अन्तरायकर्म का क्षयोपशम कारण है या वेदनीयकर्म का अथवा पुण्य पाप या अन्य कोई कारण है ? इसी । सरोगता और नीरोगता होने में भी क्या कारण है ?
समाधान-समयसार गा.२४८ से २५८ तक यह बतलाया गया है कि सुख-दुख जीवन मरण सब कर्मोदय से होता है।
जो मरइ जो य दुहिदो जायदि कम्मोदयेण सो सम्वो। तह्मा दु मारिदो वे दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा ॥२५७॥ जो ण मरदि ग य दुहिदो सोवि य कम्मोदयेण चेव खलु ।
तह्म ण मारदो णो दुहाविदो चेदि ण हु मिच्छा ॥२५॥ श्री अमृतचन्द्राचार्य भी लिखते हैं- "सुखदुःखे हि तावज्जीवानां स्वकर्मोदयेनैव तदभावे तयोर्भवितुम. शक्यत्वात्।"
जीवों के सुख, दुःख अपने कर्मोदय से ही होते हैं । कर्मोदय का अभाव होने से सुख, दुःख नहीं हो सकते।
ण य को विदेदि लच्छी ण को वि जीवस्स कुणदि उवयारं। उवयारं अवयारं कम्म सुहासुहं कुणदि ॥ ३१९ ॥(स्वा. का. अ.)
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