Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : जघन्य अनुभाग वेदना कथञ्चित् अनुत्कृष्ट है, क्योंकि उत्कृष्ट से नीचे के अनुत्कृष्ट संज्ञावाले विकल्प में जघन्यपद की भी सम्भावना है।
"अजहण्णवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा एदेसि दोहं पदार्ग तत्थुवलंपादो।"
(धवल पु. १२ पृ. ७) प्रजघन्यप्रनुभागवेदना कथञ्चित् उत्कृष्ट है और कथञ्चित् अनत्कृष्ट है, क्योंकि उसमें दोनों पद पाये जाते हैं। .
इस पार्षवाक्य से स्पष्ट हो जाता है कि उत्कृष्टअनुभाग से अनन्तानुबन्धी का, अनुत्कृष्ट अनुभाग से अप्रत्याख्यानावरण का, अजमन्य से प्रत्याख्यानावरण का और जघन्य से संज्वलन का अभिप्राय नहीं है।
अप्रत्याख्यानावररण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन कषायों के उत्कृष्ट अनुभाग उत्तरोत्तर अतिशय महान् हैं। कहा भी है
"संजलण चउक्कं जहाक्खावसंजमघावयं पच्चक्खाणावरणीयं पुण सरागसंजमघावयं । तेण पच्चक्खाणादो संजलणाणु भाग महल्लत्तणव्वदे। किं च पच्चक्खाणावरणस्स उदओ संजदासंजदगुणट्ठाणं जाव संजलणाणं पुण जाव सुहमसांपराइय सुद्धिसंजद चरिमसमओ ति। उरिमपरिणामेहि अर्गतगुणेहि वि उदयविणासाणुवलंभावो वा णव्वदे महा संमलणाणुभागदो पच्चक्खणावरणीयपयडीए अगंत गुण होणतं।" (धवल पु. १२ पृ. ५१-५२)। संजमासंजमघावयमपञ्चक्याणावरणीयं पच्चक्खाणावरणीयं पुण संजमघावयं। तेण अपच्चक्खाणावरणादो पच्चक्खाणावरणमहल्लतं गन्वदे।" ( धवल पु. १२ पृ. ५३ )
अर्थ-संज्वलन चतुष्क यथाख्यातसंयम का घातक है। परन्तु प्रत्याख्यानावरणीय सरोगसंयम का घातक है। इससे प्रत्याख्यानावरण की अपेक्षा संज्वलन का अनुभाग अतिशय महान् है, यह जाना जाता है। दूसरे प्रत्याख्यानावरण का उदय संयतासंयत गुणस्थान तक होता है, परन्तु संज्वलन का उदय सूक्ष्म-साम्परायिकशुद्धिसंयत के अन्तिम समय तक रहता है। अर्थात् अनन्तगुणे उपरिम परिणामों के द्वारा संज्वलन के उदय का विनाश नहीं उपलब्ध होता, इससे भी जाना जाता है कि संज्वलन के अनुभाग की अपेक्षा प्रत्याख्यानावरणीयप्रकृति का अनुभाग अनन्तगुणा हीन है।
अप्रत्याख्यानावरणीय संयमासंयम का घातक है, परन्तु प्रत्याख्यानावरणीय संयम का विघातक है। इससे अप्रत्याख्यानावरण की अपेक्षा प्रत्याख्यानावरण की महानता जानी जाती है।
जे.ग.3-2-72/VI/प्यारेलाल
कर्मानुभाग तथा कर्म-निर्जरा में अन्तर
शंका-क्या निर्जरा अनुभागबन्ध का अन्तिम परिणाम होने से निर्जरा का अन्तर्भाव अनुभाग बन्ध में हो जाता है ?
समाधान-अनुभागबंध और निर्जरा इन दोनों के लक्षणों में भेव होने में निर्जरा का अन्तर्भाव अनुभाग बन्ध में नहीं होता है। कहा भी है
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