Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
पयला. अ. गु. होणा । णीचा. अ. गु. होणा । णिरयगइ. अ. गु. होणा । णिरयाउ. अ. गु. होणा । होगा। रवि. अ. गु. हीणा । हस्स. अ. गु. होगा। कम्मइय. अ. गु. होणा । तेजइय. अ. गु. अ. गु. होणा ।
- जै. ग. 4-7-63 / IX / गुणरत्नविजय, ( श्वेताम्बर साधु )
श्रायु कर्म
शंका- आयुकर्म में अनुभागबन्ध होता है तो उसका रसास्वाद क्या है ? स्थिति तो समझ में आती है परन्तु अनुभाग क्या करता है ? यह समझ में नहीं आया । कृपया खुलासा करें।
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सादा. अ. गु. होणा । वेउ.
समाधान - कम्माण सगकज्जकरण सत्ती अणुभागोणाम ( जयधवल पु. ५ पृ. २) अर्थात् कर्मों के अपना कार्य करने की शक्ति को अनुभाग कहते हैं । कम्मदव्वभावोणाणावरणादिदश्वकम्माणं अण्णाणादि समुप्पायणसत्ती धवल पु. १२ पृ. २) अर्थात् ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मों की जो श्रज्ञानादि को उत्पन्न करनेरूप शक्ति है वह द्रव्यकर्म भाव ( अनुभाग ) है । आयुकमं भवविपाकी है ( महाबंध पु. पृ. ७ ) भव में रोके रखना आयुकर्म का विपाक है, अपना कार्य है । यदि आयुकर्म में अनुभाग बन्ध न हो तो वह जीव को भव में रोकने के लिये असमर्थ रहेगा । अतः भव में रोके रखना यही प्रयुकर्म के अनुभाग का कार्य है । कहा भी है- "जो पुद्गल मिध्यात्वादि बन्ध कारणों के द्वारा नरक आदि भव धारण करने की शक्ति से परिणत होकर जीव में निविष्ट होते हैं, वे आयु संज्ञा वाले होते हैं ।" ( धवल पु० ६ पृ० १२ 1
- जं. ग. 8-2-62/VI / मू. घ. छ. ला.
भुज्यमान व बद्ध श्रायुकर्म के उदय निषेक
शंका- भुज्यमान आयु का काल एक आवली से कम शेष रहने पर उदय आवली में भविष्य आयु के निषेक आ जाते हैं और उनका संक्रमण नहीं होता इसमें क्या आगम प्रमाण है ?
समाधान- - भविष्यायु का प्रबाधाकाल भुज्यमान आयु का शेष काल है ( धवल पु. ६ पृ. १६७-१७० ) अर्थात् भुज्यमान श्रायु के अन्तिम निषेक के पश्चात् ही भविष्य आयु का प्रथम निषेक प्रारम्भ हो जाता है अन्यथा भुज्यमान श्रायु के समाप्त होने पर जीव का चतुर्गति के बाहर हो जाने से अभाव प्राप्त होता है ( धवल पु. १० पृ. २३७ ) । यदि भुज्यमान शेष आयु एक आवली से कम रह गई तो उदयावली में आगामी आयु के निषेक अवश्य होंगे, क्योंकि भुज्यमान आयु के अन्तिम निषेक श्रौर भविष्य आयु के प्रथम निषेक के मध्य अंतराल नहीं है । चार आयुकर्म का संक्रमण नहीं होता, ऐसा स्वभाव है ( धवल पु. १६ पृ. ३४१ ) उदयावली गत निषेकों का भी संक्रमण नहीं होता ( धवल पु. १६ पृ. ३४१ व ३४२ । जिसप्रकार बंधावली व्यतिक्रान्त ज्ञानावरणादि कर्मों के समयप्रबद्धों के अपकर्षण और पर-प्रकृति-संक्रमण के द्वारा बाधा होती है, उस प्रकार आयुकर्म के अबाधाकाल पूर्ण होने तक अपकर्षण और पर-प्रकृति-संक्रमण आदि के द्वारा बाधा का अभाव है । ( धवल पु. ६ पृ. १६८ )
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कर्मोदय का कार्य
शंका- आयुकर्म के उदय का कार्य क्या है ? यदि कहा जाय कि आयुकर्म के उदय का कार्य जीवन मात्र प्रदान करना है। तो फिर संसार में यह व्यवहार प्रचलित है कि आयु शेष है तो कोई मार नहीं सकता। आयु
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