Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
जैसे किसी कर्मभूमिया मनुष्य या तियंच की आयु ८१ वर्ष की है। उस ८१ वर्ष में से दो त्रिभाग अर्थात् ५४ वर्ष बीत जाने पर शेष त्रिभाग ( २७ वर्ष ) का प्रथम अन्तर्मुहूर्त काल आयुबंध योग्यकाल है । शेष २७ वर्षं के दो त्रिभाग १८ वर्ष बीत जाने पर और एक त्रिभाग शेष रहने पर अर्थात् ६ वर्ष आयु शेष रहने के प्रथम - अन्तर्मुहूर्त में आयुबन्ध योग्य होता है । शेष ९ के दो त्रिभाग ( ६ वर्ष ) बीत जाने पर शेष एक त्रिभाग अर्थात् आयु में तीनवर्ष शेष रहने के प्रथमभ्रन्तर्मुहूर्त में आयुबंध योग्यकाल होता है । शेष तीनवर्ष के भी दो त्रिभाग बीत जाने पर और एक त्रिभाग अर्थात् आयु में एक वर्ष अवशेष रहनेपर प्रथम अन्तर्मुहूर्त श्रायुबंध योग्यकाल होता है । शेष एक वर्ष के दो त्रिभाग ( ८ माह ) बीत जानेपर शेष एक त्रिभाग अर्थात् प्रायु में चारमाह अवशेष रहने पर प्रथम अन्तर्मुहूर्त बंघयोग्यकाल होता है । इसी प्रकार आगे भी विशेष एक विभाग का प्रथम अन्तर्मुहूर्त श्रायुबन्ध योग्य काल होता है ।
- जै. ग. 13-7-72 / VII / र. ला जैन
" सम्यक्त्वं च " सूत्र द्वारा किस-किस आयु के बन्ध का विधान व प्रतिषेध होता है शंका- तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय ६ सूत्र २१ से क्या सम्यक्त्व के द्वारा देव आयु के अतिरिक्त अन्य आयुबन्ध का निषेध हो जाता है ?
समाधान - " सम्यक्त्वं च " ( ६।२१ ) इस सूत्र द्वारा यह बतलाया गया है कि मनुष्य व तिर्यंचों के सम्यक्त्व के द्वारा मात्र वैमानिकदेवों की आयु का ही बंध होता है, किन्तु इससे सम्यग्दष्टिदेव व नारकियों के मनुष्यायु के बंध का निषेध नहीं होता है, क्योंकि देव और नारकियों में सम्यक्त्व से मात्र मनुष्यायु का ही बन्ध होता है ।
तुम
सर्वापवादकं सूत्रं केचिद्वयाचक्षते सति । सम्यक्त्वेऽन्यायुषां होतोविफलस्य प्रसिद्धितः ॥२॥
तन्नाप्रच्युतसम्यक्त्वा जायंते देवनारकः ।
मनुष्येष्विति नैवेदं तद्बाधकमितीतरे ||३|| ( श्लोक वार्तिक ६।२१ )
यदि कोई कहे कि यह 'सम्यक्त्वं च' सूत्र पहिले कहे गये सभी आयु आस्रवों के प्रतिपादक सूत्रों का अपवाद करने वाला है, क्योंकि सम्यक्त्व के होने पर नारक, तिथंच व मनुष्य आयु के प्रास्रवों के कारणों के विफल हो जाने की प्रसिद्धि है । इसके उत्तर में प्राचार्य कहते हैं कि ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि जिनका सम्यक्त्व च्युत नहीं हुआ है ऐसे देव व नास्की जीव मरकर मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं। इस कारण यह सूत्र देव और नारकियों में मनुष्यायु के आस्रव का निषेधक नहीं है ।
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चारों ही गतियों में श्रायुबन्ध प्राठ बार हो सकता है
शंका - एकनव में आयुकर्म का बंध अधिक से अधिक कितनी बार हो सकता है ? क्या यह नियम चारों गतियों में समान है ?
- जै. ग. 11-5-72 / VII /
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