Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जंन मुख्तार :
समाधान-पंचसंग्रह गाथा ४८६ इसप्रकार है
आवरण देसघावंतराय संजलण पुरिस तत्तरसं। चउविहभाव परिणया तिमावसेसा सयं तु सत्तहियं ॥४८६॥ आवरण देसघावंतराय संजलण पुरिस सत्तरसं । चउविहभावपरिणदा तिविहा भावा भवे सेसा ॥११४॥
( पं० सं० पृ० ६२३ ) गो० क० गा० १८२ टीका-आवरण देससेस चउणाणावरण तिष्ह दसणावरण चउसंजलण पुरिसवेद पंचअंतराइय सत्तरस पयडीणं उक्कस्स अणुभागबंधो चउढाणिओ। अणुक्कस्स अणुभागबन्धो चउट्ठाणिओ वा तिढाणिओ वा विद्वाणिो वा एक्कट्ठाणिओ वा। जहण्ण-अणुभागबन्धो इक्कट्ठाणिओ वा । अजहण्ण अणुभागबन्धो एक्कट्ठाणि वा विट्ठाणि वा विठाणिओ वा चउठाणिओ वा। केवलणाणावरण-छदसणावरण-सादासाब-मिच्छत्त-वारसकसाय-अटठणोकसाय-बजाउसवाणाम पयडी-उच्च णिच्चगोदाणं उक्कस्स अणुभागबन्धो चउट्ठाणिओ। अणक्करत अणुभागबन्धी चउट्ठाणिओ या तिहाणिओ वा विट्ठाणिओ वा। जहण्ण अणुभागबन्धो विट्ठाणिओ। अजहण्ण अणुभागबन्धोविट्ठाणिो वा तिट्ठाणिओ वा चउट्ठाणिओ वा ।
मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, संज्वलन-क्रोध-मान-माया-लोभ, पुरुषवेद, दानांत राय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीयांतराय इन १७ प्रकृतियों का जघन्य अनुभागबंध एकस्थानिक है, किन्तु शेष सर्व प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध विस्थानिक है, एक स्थानिक नहीं है। यह सब कथन अनुभागबन्ध की अपेक्षा से है ।
सत्त्व व उदय की अपेक्षा सम्यक्त्वप्रकृति, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद का क्षपणा के अन्तिमसमय में एकस्थानिक होता है । ज० घ० पु० ५ में कहा भी है ।
"सणमोहणीयक्खवणाए मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणि खइय पुणो सम्मत्तं पि विणासिय कवकरणिज्जो होदूण तस्स कवकरणिज्जस्स चरिमसमए सम्मत्तस्स जहण्णमणुभागसंतकम्मं तं च देसघादि एगट्ठाणियं ।
(ज० घ० पु० ५ पृ० १४३ ) दर्शनमोहनीय की क्षपणा के समय मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व का क्षय करके पूनः सम्यक्त्वप्रकृति का भी नाश करने के लिये, कृतकृत्य होकर, उस कृतकृत्यवेदक के अन्तिमसमय में सम्यक्त्वप्रकृति का जघन्य-अनुभागसत्व होता है। वह जघन्य-अनुभाग-देशघाती और एकस्थानिक होता है। "तस्स चरिमसमयसवेदयस्स इत्थिवेदाणुभाग संतकम्मं देसघादी एगट्ठाणियं च होदि, उदयसरूवत्तादो।"
(ज० ध० पु० ५ पृ० १४८ ) .. अन्तिम-समयवर्ती सवेदक का स्त्रीवेदसम्बन्धी अनुभागसत्कर्म देशघाती और एक स्थानिक होता है, क्योंकि वह उदयस्वरूप है।
'खवगस्स चरिमसमयणवंसयवेदयस्स अणुभाग संतकम्मं देसघावी एगट्ठाणियं ।' (ज०० पु० ५ पृ० १५१) अन्तिमसमयवर्ती नपुसकवेदी क्षपक का अनुभाग सत्कर्म देशघाती और एकस्थानिक होता है।
-जे. ग. 29-4-76/VI/ ज. ला. जैन, भीण्डर
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