Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ३४७
शमसम्यग्दर्शन होता है । क्षयोपशमसम्यग्दर्शन में तीन करणों के द्वारा प्रथम अनन्तानुबन्धीचतुष्क की विसंयोजना करता है । पुनः तीन करणों द्वारा मिथ्यात्वप्रकृति का क्षय करता है, सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति का क्षय करता है उसके पश्चात् सम्यक्त्व प्रकृति क्षय करके क्षायिकसम्यग्दृष्टि हो जाता है ।
- जै. ग. 21-11-63 / 1X / ब्र. प. ला.
प्रथमोपशम सम्यक्त्वी के निर्जरा की श्रवधि
शंका - प्रथमोपशमसम्यग्दृष्टि को प्रथम अन्तर्मुहूर्त में असंख्यातगुणी निर्जरा कही, परन्तु उसके बाद रुक जाती है। क्या कारण है ?
समाधान—प्रथमोपशमसम्यग्दर्शन होने पर एक अन्तर्मुहूर्त तक परिणामों में प्रतिसमय विशुद्धता अधिकअधिक होती जाती है। उसके पश्चात् विशुद्धता में उत्तरोत्तर वृद्धि होने का नियम नहीं । अतः प्रथमोपशमसम्यग्दर्शन होने के पश्चात् एक अन्तर्मुहूर्त तक ही श्रसंख्यातगुणी निर्जरा कही ।
- जै. ग. 31-10-63 / IX / आदिसागर
देवों में सम्यक्दर्शन की उत्पत्ति के काररण
शंका- देवों के सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में बाह्य निमित्तों में बारहवें स्वर्ग तक देव ऋद्धि दर्शन को भी कारण कहा है। १३ में से १६ वें स्वर्ग तक देवों में भी किल्विषक आदि देव पाए जाते हैं तो वहां पर वेव ऋद्धि दर्शन को कारण क्यों नहीं कहा ?
समाधान-आनत आदि चार कल्पों में अर्थात् १३ वें से १६ वें तक स्वर्गों में महद्धिसम्पन्न ऊपर के देवों का आगमन नहीं होता, इसलिए वहाँ महद्धिदर्शनरूप प्रथमसम्यक्त्व की उत्पत्ति का कारण नहीं पाया जाता और उन्हीं कल्पों में स्थित देवों की महद्धि का दर्शन प्रथमसम्यक्त्व की उत्पत्ति का निमित्त हो नहीं सकता, क्योंकि उसी ऋद्धि को बार-बार देखने से विस्मय नहीं होता । अथवा उक्त कल्पों में शुक्ललेश्या के सद्भाव के कारण महद्धिदर्शन से कोई संक्लेशभाव उत्पन्न नहीं होते । ( धवल पु० ६ पृ० ४३५ अतः बारहवें आदि चार स्वर्गों में देवदर्शन को प्रथमोपशमसम्यक्त्व की उत्पत्ति में कारण नहीं कहा है ।
—जै. ग. 8-2-62/VI / मू. ध. छ. ला.
जन्म के मुहूर्त पृथक्त्व पश्चात् तिर्यच सम्यक्त्व पा सकता है। शंका-उपासकाध्ययन पृ० १०७ पर भावार्थ में श्री पंडित कैलाशचन्दजी ने लिखा है - "तियंचगति में जन्म लेने के आठ-नौ दिन बाद सम्यक्त्व उत्पन्न हो सकता है ।" क्या ऐसा सम्भव है ?
समाधान-तियंचगति में जन्म लेने से मुहूर्तपृथक्त्व के पश्चात् ही वेदकसम्यक्त्व हो सकता है । श्री वीरसेन आचार्य ने धवल प्रन्थराज में कहा भी है
Jain Education International
"तिरिक्खस्स मस्सस्स वा अट्ठावीससंतक म्मिय मिच्छादिट्ठिस्स देवुत्तरकुरु पाँचदियतिरिक्खजोगिणीसु उपज्जिय वे मासे गन्मे अच्छिकूण णिक्खंतस्स महलबुधत्तेण विसुद्धो होतॄण वेदगसम्मतं पडिवज्जिय ।' ( धवल ४ पृ० ३७० )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org