Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ४११
अर्थ - मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये बंध के हेतु अर्थात् कारण हैं । यदि मन को ही बंध का कारण माना जाय तो असंज्ञी जीवों के बंधाभाव का प्रसंग आ जायगा, किन्तु श्रसंज्ञी जीव प्रबंधक नहीं होते। कहा भी है
सणियाणुवादेण सण्णी बंधा असण्णी बंधा ॥ ३८ ॥ ( धवल पु० ७ १० २३ )
अर्थ-संज्ञी मार्गणानुसार संज्ञी बंधक है, असंज्ञी बंधक है ।
- जै. ग. 15-1-68 / VII /
कदलीघात से मरने वाले जीव के श्रायुबन्ध कब होता है, इसका खुलासा
शंका- भुज्यमान आयु ७५ वर्ष है किन्तु ५० वर्ष से पूर्व अपघात कर लिया, तब किस समय अगली आयु का बंध होगा ?
समाधान - अपघात अर्थात् आयु का कदलीघात उन्हीं कर्मभूमिया - मनुष्य या तियंचों का होता है जिन्होंने परभवसम्बन्धी आयु का बंध नहीं किया है, किन्तु जिन्होंने परभवसम्बन्धी आयु का बंध कर लिया है, उन जीवों की भुज्यमानआयु का कदलीघात नहीं होता है । कहा भी है
"परभविआउए बद्ध पच्छा भुंजमाणाउअस्स कवलीघावो णत्थि ।" ( धवल पु० १० पृ० २३७ )
अर्थ - परभवसम्बन्धी आयु के बंधने के पश्चात् भुज्यमानआयु का कदलीघात नहीं होता । कदलीघातमरणवाले जीव के असंक्षेपाद्धाकाल शेष रहने पर परभवसम्बन्धीआयु का बंध होता है, क्योंकि आयुकर्म का जघन्य आबाधाकाल असंक्षेपाद्धा है । ( धवल पु० ६ पृ० १९४ )
-जै. ग. 15-1-68 / VII /
श्रागामी मनुष्यायु का बंध कर लेने वाला मनुष्य वर्तमान भव से मोक्ष नहीं जा सकता
शंका- जिसने इस मनुष्यभव में अगली मनुष्यायु का बंध कर लिया होवे, बाद में मुनि बनकर तपस्या करके कर्म काटकर, क्या मोक्ष जा सकता है ?
समाधान - जिस मनुष्य ने परभवसम्बन्धी मनुष्यायु, नरकायु या तियंचायु का बंध कर लिया है वह अणुव्रत या महाव्रत भी धारण नहीं कर सकता अर्थात् मुनि भी नहीं बन सकता। श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने कहा भी है
चत्तारिवि वेत्ताइं आउगबंघेण होइ सम्मतं । अणुवदमहत्वदाई ण लहइ देवाउगं मोत्तु ॥ ३३४ ॥
अर्थ - चारों ही गतियों में किसी भी आयु के बंध होने पर सम्यक्त्व हो सकता है, परन्तु देव आयु के बंघ के सिवाय अन्य तीनआयु के बन्धवाला अणुव्रत तथा महाव्रत नहीं धारण कर सकता ।
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