Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
जिसने परभव की आयु का बंध कर लिया है उस मनुष्य को उस भव से मोक्ष नहीं हो सकता है।
-जं. ग. 18-1-68/VII/ दि. ज. स. रेवाड़ी गर्भ में भी त्रिभागी पड़ सकती है शंका-गर्भ अवस्था में भी क्या त्रिभागी आजावेगी और आयु बंध हो जावेगा ?
समाधान–पर्याप्ति पूर्ण होने के पश्चात् गर्भअवस्था में भी परभव की आयु बंध सकती है । ( धवल पु०७ पृ० १९२ सूत्र १६ को टीका )
-ज.ग. 15-1-68/VII/.........
प्रायुबन्ध के समय गतिबन्ध शंका-'आय का अबंध विर्षे चारगति का बंध नहीं' यह कैसे ?
समाधान-चारों गतियों में से किसी एकगति का प्रत्येकसमय पाठवेंगुणस्थान तक बंध अवश्य होता है, किन्त आय का बंध प्रत्येक समय नहीं होता। 'आयु का अबंध विर्षे चार गति का बंध नहीं' यह कहना ठीक नहीं। आयुबंध के समय उसीगति का बंध होता है जिस आयु का बंध हो रहा है।
शंका-पूर्व बंधी आयु में क्या आस्रव हुए कर्मों का बंटवारा नहीं जाता?
समाधान-जिससमय आयुबंध होता है उसीसमय आस्रव हुई कार्माण वर्गणाओं में से आयु का बँटवारा होता है। जिससमय प्रायु का बंध नहीं होता उससमय आयुकर्म को बँटवारा भी नहीं मिलता। आयुबंधकाल अंतमहतं है उसके समाप्त होने पर प्रायुकर्म को बँटवारा मिलना भी रुक जाता है। उसके पश्चात् पुनः जब आयुबंध होता है उससमय पूनः प्रायुकर्म को बंटवारा मिलने लगता है। ऐसा नहीं कि एकबार आयुबंध होने के पश्चात आयुअबंध काल में भी आयुकर्म को बंटवारा मिलता रहे।
-ण. ग. 4-7-63/IX/ म. ला. जैन देवों द्वारा बद्ध जघन्य प्रायु का घात नहीं होता शंका-धवल पु०७ पृ० १९२-१९६ में देवों का अन्तर बताया, उसमें उनके आगामी आय जघन्यस्थिति. बंध बताकर यही जघन्य-अन्तर बताया तो इससे क्या यह तात्पर्य लेना चाहिये कि ऐसे जीवों के यहां मनुष्य या तिर्यच होनेपर कदलीघातमरण नहीं होता?
समाधान- देवों द्वारा बांधी गई जघन्य मनुष्यायु या तियंचायु का कदलीघात नहीं होता है। कहा भी है-"देवे हि ( जहण्ण ) बढाउअस्स घादा भावादो।" ( धवल पु० ९ पृ. ३०६ )
अर्थात-देवों द्वारा बांधी गई जघन्यप्रायु का घात नहीं होता है ।
-ज.ग. 29-8-66/VII/र.ला. जैन, मेरठ
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