Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
इषुगति वाला विग्रहगति नहीं करता
शंका- मोक्षशास्त्र अध्याय २ सूत्र ३० की टीका में कहा है कि इषुगतिवाला जीव विग्रहगति में आहारक रहेगा, सो कैसे ?
समाधान - मोक्षशास्त्र अध्याय २ सूत्र ३० की टीका में तो यह लिखा है
[ ४०९
"उपपावक्षेत्र प्रति ऋज्य्यां गतौ आहारकः " [ सर्वार्थ सिद्धि ] |
समावे विद्यमाने सति उपपाद क्षेत्रं प्रति अविग्रहायां गतौ ऋज्वां गतावाहारकः ।" [ तत्त्वार्थवृत्ति ] ।
यहाँ पर तो यह बतलाया गया है कि यदि उपपादक्षेत्र के लिये बिना मोड़े वाली गति अर्थात् सिद्धि गति होती है तो आहारक ही रहता है ।
इषु अर्थात् ऋजुगति वाले जीव के विग्रह अर्थात् मोड़े वाली गति कैसे संभव है । अर्थात् इषु गति वाले जीव के विग्रह - गति संभव नहीं है ? प्रत: 'इषुगति वाला जीव विग्रहगति में आहारक कैसे रहेगा' यह शंका ही उत्पन्न नहीं होती है ।
"विग्रहो व्याघातः कौटिल्यमित्यर्थः । "
विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता ( मोड़ा ) है ।
संसारी जीव के जो एक समयवाली गति है वह मोड़े रहित अर्थात् ऋजु है । क्योंकि " एकसमयाऽविग्रहाः " ऐसा सूत्र है ।
बन्ध
ऋजुगति वाला जीव उसी समय में उत्पन्न हो जाने के कारण प्रहारक हो जाता है और उससे पूर्वके समय में पूर्व पर्याय के शरीर में प्राहारक था । एक या दो या तीन मोड़े वाली गति में एक या दो या तीन समय तक उपपाद क्षेत्र को प्राप्त न करने के कारण जीव एक या दो या तीन समय तक अनाहारक रहता । जैसा कि "विग्रहवती च संसारिणः प्राक्चतुर्भ्यः । एकं द्वौ त्रीन्वाऽनाहारकः ।" इन सूत्रों द्वारा कहा गया है । - जै. ग. 1-1-76 / VIII /
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उपशम सम्यक्त्वी के भी श्राहारक शरीर का बन्ध
शंका- आहारकद्विकका बंध और उदय उपशम सम्यवश्व में होता है या नहीं ?
समाधान ——–उपशम सम्यक्त्व में श्राहारकशरीर व आहारकशरीर अंगोपांग का बंघ हो सकता है, किन्तु उदय नहीं हो सकता ।
"आहारसरीर आहारसरीर अंगोबंगाणं को बंधो को अबंधो ? ॥३१५॥"
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