Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
• महिलाओं को क्षायिकसम्यक्त्व नहीं होता
शंका-क्या द्रव्यस्त्री को सम्यक्त्व नहीं प्राप्त होता है ?
समाधान - द्रव्यस्त्री को उपशम तथा क्षयोपशमसम्यक्त्व हो सकता है, किन्तु क्षायिकसम्यक्त्व नहीं हो सकता है । श्री पूज्यपादआचार्य ने सर्वार्थसिद्धिग्रंथ में कहा भी है
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" द्रव्यवेदस्त्रीणां तासां क्षायिकासम्भवात् । मानुषीणां त्रितयमप्यस्ति पर्याप्तिकानामेव नापर्याप्तिकानाम् । क्ष। किं पुनर्भाववेदेनैव ।"
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अर्थ– द्रव्यस्त्रियों के क्षायिकसम्यक्त्व संभव नहीं है । मनुष्यनियों में उपशम-क्षयोपशम- क्षायिक ये तीनों सम्यक्त्व पर्याप्तनवस्था में होते हैं अपर्याप्तअवस्था में नहीं होते हैं, किन्तु क्षायिकसम्यक्त्व मात्र भावस्त्री के होता है ।
जो द्रव्य से पुरुष है, किन्तु स्त्रीवेद चारित्रमोहनीयकर्मोदय के कारण भाव से स्त्री है उस मनुष्यनि के क्षायिकसम्यक्त्व हो सकता है। जो द्रव्य से भी स्त्री है उसके क्षायिकसम्यक्त्व संभव नहीं है ।
प्रथम नरक में क्षायिक सम्यक्त्वी श्रसंख्यात हैं
शंका - प्रथमनरक में क्षायिकसम्यग्दृष्टि क्या संख्यात हैं या असंख्यात ?
- जै. ग. 25-6-70 / VII / का. ना. कोठारी
समाधान - प्रथम नरक में क्षायिकसम्यग्दृष्टि अर्थात् मोहनीयकर्म की २१ प्रकृतियों की सत्तावाले जीव असंख्यात हैं, क्योंकि उत्कृष्टकाल पल्योपम के श्रसंख्यातवें भाग कम एकसागर है । ज० ध० पु० २ में कहा भी है
"आवेसेण निरयगईए गेरईएस अट्ठावीस सत्तावीस छव्वीस - चउवीस-एक्कवीसवि० केत्ति० ? असंखेज्जा । वावीसविह० के० ? संखेज्जा । एवं पढमपुढवि० ।" ( जयधवल पु० २ पृ० ३१९ )
आदेश की अपेक्षा नरकगति में नारकियों में श्रद्वाईस, सत्ताईस, छब्बीस, चौबीस और इक्कीस विभक्तिवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । बाईस विभक्तिवाले जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार पहली पृथ्वी के नारकियों में जानना चाहिये । इक्कीसप्रकृति विभक्तिवाले जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि ही होते हैं, क्योंकि अनन्तानुबन्धी चतुष्क और तीन दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय से २१ प्रकृति का सत्त्व मोहनीयकर्म का रह जाता है ।
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"आवेसेण णिरयगईए रईएस एक्कवीस विह० जह० चउरासीदि वस्ससहस्साणि अंतोमुहुत्तूणाणि । उक्क० सागरोवमं पलिबोवमस्स असंखेज्जविभागेरगुणं । एवं पढमाए पुढवीय ।" ( ज० ध० पु० २ पृ० २७ )
आदेश की अपेक्षा नरकगति में नारकियों में इक्कीसप्रकृति विभक्ति ( सत्त्व ) स्थान का कितना काल है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौरासीहजारवर्ष और उत्कृष्ट पल्योपमके असंख्यातवें भाग कम एकसागर है । इसी प्रकार पहले नरक में जानना चाहिए ।
- जै. ग. 29-4-76 / VI / ज. ला. जैन, भीण्डर
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