Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ ३७७
सम्यग्दृष्टि के संसार-वास का काल
शंका-उपशमसम्यग्दर्शन होने पर अनादिमिथ्यादृष्टि का अनन्तसंसारकाल कटकर अर्धपुद्गलपरिवर्तनमात्र संसारकाल शेष रह जाता है । जब वह जीव सम्यक्त्व से च्युत होकर पुनः मिथ्यात्व में जाता है तो क्या उसका संसार काल पुनः बढ़ जाता है।
समाधान-प्रथमोपशमसम्यग्दर्शन के द्वारा जो अनंतसंसारकाल कटकर अर्धपुद्गलपरिवर्तनमात्र रह जाता है वह काल समाधि-मरण आदि के द्वारा कम तो हो सकता है, किन्तु बढ़ नहीं सकता है। क्योंकि जिस जीव को एकबार सम्यग्दर्शन हो गया है वह अधिक से अधिक अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल तक ही संसार में भ्रमण कर सकता है। क्योंकि सादिमिथ्यादृष्टि का उत्कृष्टकाल अर्धपुद्गलपरिवर्तन है। ( धवल पु० ४ पृ० ४२५ सूत्र ४ )
-जं. ग. 21-11-66/IX/ मगनमाला प्रर्द्ध पुद्गल परावर्तन का जघन्य काल भी अनन्त है शंका-अर्धपुद्गलपरिवर्तन का जघन्य और उत्कृष्ट काल कितना है ?
समाधान-पुद्गलपरिवर्तन का जघन्यकाल भी अनन्त है और उत्कृष्टकाल भी अनन्त है, किन्तु जघन्य से उत्कृष्ट का काल अनन्तगुणा है । धवल पु० ४ पृ० ३३१ । इसीप्रकार अर्धपुद्गलपरिवर्तन के विषय में भी जानना चाहिए।
-णे. ग. 1-2-68/VII/. ला. सेठी "अर्द्ध पदगलपरिवर्तन" का प्रमाण शंका-अर्द्धपुगलपरावर्तन का कितना काल है ? समाधान-प्रदं पुद्गलपरावर्तन में भी अनन्त सागर होते हैं।'
-पत्राचार 16-10-79/ ज. ला. जैन, भीण्डर
अर्द्ध पुद्गलपरावर्तन का स्वरूप शंका-अर्द्ध पद्गलपरावर्तन काल कितना होता है ? यह कौनसे अनन्त में गभित है ? यह अव्यय है या
सव्यय ?
समाधान-कार्मणवर्गणा और नोकर्मवर्गणा इन दोनों की अपेक्षा से एक पुद्गलपरिवर्तनकाल होता है। यह अनन्तरूप है । इनमें से एक की अपेक्षा अर्द्ध पुद्गलपरिवर्तनकाल है । यह अद्ध पुद्गलपरिवर्तन
१. परन्तु यहाँ 'अनन्त' से सक्षय अनन्त लेना चाहिये, अक्षय अनन्त नहीं; इतना विशेष ज्ञातव्य है ।
"सम्पादक"
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