Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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जिसको उन्होंने षट्खंडागम ग्रंथ में लिपिबद्ध कर दिया था। अर्थात् यह सूत्र श्री गौतम गणधर द्वारा रचा गया था। इस सूत्र के सामने पं० राजमलजी के वाक्य कैसे प्रमाणभूत माने जा सकते हैं, जिनको गुरु परम्परा से उपदेश नहीं प्राप्त हुआ है वे ग्रंथ रचने में प्रायः स्खलित हुए हैं। उनके बनाये हुए ग्रंथ स्वयं प्रमाण रूप नहीं हैं; किन्तु उनकी प्रमाणता सिद्ध करने के लिये प्राचार्य-वाक्यों की अपेक्षा करनी पड़ती है।
- जै.ग.6-6-63/1X/ प्र.च.
वेद परिवर्तन का प्रभाव शंका-पंचाध्यायी दूसरा अध्याय श्लोक १०९२ में कहा है कि "कोई एक पर्याय में क्रमानुसार तीन वेद वाला होता है।" जब एक ही पर्याय में भाववेद बदलता है तो सभी जीव मात्र पुरुषवेद से क्षपक श्रेणी चढ़ने चाहिये, क्योंकि वहाँ पर परिणाम अतिविशुद्ध होते हैं वहाँ पर अतिअप्रशस्तनपुंसक व स्त्रीवेद का उदय कैसे संभव हो सकता है ?
समाधान-कषाय के समान वेद एक ही पर्याय में नहीं बदलता । जन्म से मरणपर्यंत एक ही वेदनोकषाय का उदय रहता है । कहा भी है
नान्तमौ हूतिका वेदास्ततः सन्ति कषायवत् ।
आजन्म मृत्युतस्तेषामुदयो दृश्यते यतः ॥१९१॥ संस्कृत पंचसंग्रह कषायवनान्तर्मुहूर्त स्थायिनो वेदाः आजन्मनः आमरणात्तदुदयस्य सत्त्वात् । धवल पुस्तक १ पृ० ३४६ ।
अर्थ-जैसे विवक्षित कषाय केवल अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त रहती है, वैसे सभी वेद एक अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त नहीं रहते हैं, क्योंकि जन्म से लेकर मरण तक किसी एक वेद का उदय पाया जाता है ।
जिस प्रकार कषाय व योगमार्गणा में योग व कषाय के परिवर्तन की अपेक्षा काल व अन्तर की प्ररूपणा की है उस प्रकार वेदमार्गणा में काल व अन्तर की प्ररूपणा नहीं की है यह धवल व जयधवल के स्वाध्याय से स्पष्ट हो जाता है। जो स्त्रीवेद से श्रेणी चढ़े हैं वे मिथ्यात्व व स्त्रीवेद सहित मनुष्यपर्याय में उत्पन्न हए हैं जैसा कि जयधवल पुस्तक ९ पृ० २६७-२६८ से ज्ञात होता है। अत: एक पर्याय में भाववेद परिवर्तन नहीं होता।
-जं. ग. 6-6-63/IX/प्र. च. द्रव्यवेद एवं भाववेद शंका-गोम्मटसारजीवकाण्ड में मनुष्यनी के चौदह गुणस्थान कहे हैं वे क्या भाव की अपेक्षा कहे या द्रव्य की अपेक्षा ? तिर्यचनी और देवांगना का कथन भी भाव की अपेक्षा है या द्रव्य की अपेक्षा ?
समाधान-गोम्मटसार में 'मनुष्यनी' भाव की अपेक्षा कहा है । द्रव्य की अपेक्षा 'महिला' कहा है। महिला के तीन हीन संहनन होते हैं तथा वह वस्त्र का त्याग नहीं कर सकती, अतः उसके संयम का अभाव होने से
१. पण्डितजी के इस कथन का अभिप्राय यह है कि पण्डितों द्वारा लिखे गये ग्रन्थ जितने अंत में आगम से [ आर्ष ग्रन्थों से ] मेल खाते हैं; उतने अंग्त्रों में तो प्रमाण है ही; परन्तु उनमें जो आगम विपरीत अंत्र है उन्हें प्रामाणिक कैसे स्वीकार किया जा सकता है।
-सम्पादक
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