Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व
[ ३०७
संयममार्गणा का अभिप्राय संयम के भेद से नहीं है, किन्तु संयम की अपेक्षा नानाजीवों की अवस्था बतलाने से है।
संयमसहित जो जीव हैं वे भी सामायिक-छेदोपस्थापना-शुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसापरायशुद्धिसंयत, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत हैं । षट्खंडागम सूत्र में कहा भी है
__ "संजमाणुवादेण अस्थि संजदा सामाइय-छेदोवट्ठाणसुद्धिसंजदा परिहारसुद्धिसंजदा सुहमसांपराइयसुद्धिसंजदा जहाक्खादविहारसुद्धिसंजवा संजवासंजदा असंजदा चेदि ॥ १२३ ॥
अर्थ-संयममार्गणा के अनुवाद में सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसापरायशुद्धिसयत, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत ये पांच प्रकार के संयत तथा संयतासंयत और असंयत जीव होते हैं ।
संयमकी अपेक्षा जीवों का अन्य कोई भेद संभव नहीं है ।
-जें. ग. 7-10-65/X/प्रेमचन्द संयत, असंयत व संयतासंयतों की राशि एवं तत्संबंधी गुणकार/भागहार
शंका-धवल पु०७पृ० ५१२ सूत्र ६० की टीका में सब जीवों का अनन्तवांभाग प्राप्त करने के लिये सर्वजीवराशि को अनन्त का भाग दिया है। सूत्र ६२ की टीका में अनन्तबहुभाग प्राप्त करने के लिये भी सर्वजीवराशिको अनन्तका भाग देकर एकभाग ग्रहण किया है, सो कैसे ?
समाधान-घवल पु०७ पृ० ५१२ सूत्र ६० में 'संयतजीव सर्वजीवों के अनन्तवेंभाग हैं' ऐसा कहा है। प्रतः संयतजीवों को अनन्ताभाग सिद्ध करने के लिये टीका में सर्वजीवराशि में संयतजीवों का भाग देने पर अनन्त लब्ध प्राप्त होता है। ऐसा कहा है जिससे सिद्ध होता है कि संयतजीव अनन्तवें भाग हैं अन्यथा अनन्त लब्ध प्राप्त नहीं होता।
सत्र ६२ में यह कहा है कि 'असंयतजीव सर्वजीवोंके अनन्तबहभाग हैं अर्थात् असंयतोंके अतिरिक्त शेष रहे संयत व संयतासंयतजीव वे सर्वजीवों के अनन्तवेंभाग हैं। अतः संयत आदि जीवोंका सर्वजीवराशि में भाग देने
. सर्वजीव राशि पर अनन्त प्राप्त होते हैं।
।
""=सर्व संयतजीव अर्थात सबजावराशि
५ संयतजीव = अनन्त ।
सर्वजीवराशि-अनन्तबहुभागप्रमाण असंयतजीव = सर्वजीवराशि के अनन्तवेंभागप्रमाण संयतजीव । सर्वजीवराशि:संयतजीव=अनन्त ।
-जै.ग. 20-4-72/IX/ यशपाल
(१) बारह प्रकार के असंयम का कारण
(२) अविरति के तीन एवं बारह भेदों का समन्वय शंका-जैन सिद्धान्त प्रवेशिका प्रश्न नं० ४२८ के उत्तर में अविरति तीन प्रकार की बतलाई है'अनंतानबंधीकषायोदयजनित, अत्रत्याख्यानावरणकषायोदयजनित व प्रत्याख्यानावरणकषायोदयजनित।' इसप्रकार
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