Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
"छप्रस्थतपोधना अपि सप्तधातुरहितपरमौदारिकशरीराभावे" छट्ठोत्ति पढम सण्णा, इति वचनात् । “परमौदारिक-शरीरत्वाद् भुक्तिरेव नास्ति'।
सप्तधातुरहित परमौदारिक शरीर के अभाव के कारण छठे गुरणस्थान तक आहार संज्ञा होती है अर्थात् भूख-प्यास लगती है। परमौदारिक शरीर अर्थात् सप्त कुधातु रहित शरीर हो जाने पर भुक्ति नहीं होती, अर्थात् भुख-प्यास आदि का अभाव हो जाता है।
श्री कूदकूद प्राचार्य ने भी केवली के परमौदारिक शरीर के विषय में बोधपाहड में निम्नप्रकार कहा है
जरवाहिदुक्खरहियं, आहारणिहारवज्जियं विमलं । सिंहाण खेल सेओ, णस्थि दुगुछा य दोसो य ॥३७॥
गोखीरसंख-धवलं मंसं, रुहिरं च सवंगे ॥३८॥ टीका-"( दोसो य)-दोषश्च वातपित्तश्लेष्माणोऽर्हति न वर्तन्ते । (गोखीरसंख धवलं मंसं रहिरं च सव्वंगे)-गोक्षीरवच्छङ्ख-धवलमुज्ज्वलं मांसं, गोक्षीर-वद्धवलं रुधिरं, गोक्षीर-बद्धवलं सर्वाङ्ग सर्वस्मिन् शरीरे।"
अरहंत भगवान् का शरीर जरा, व्याधि और दुःख से रहित है। वह आहार-नीहार से रहित है, मलमूत्र रहित है। अरहन्त भगवान् के नाक का मल, थूक, पसीना, ग्लानि उत्पन्न करने वाली घृणित वस्तु तथा वात, पित्त, कफ आदि दोष नहीं हैं। भगवान् के समस्त शरीर में गाय के दूध और शङ्ख के समान सफेद माँस और रुधिर होता है।
आप्त-स्वरूप में भी कहा है
नष्टं छमस्थविज्ञानं, नष्टं केशादि-वर्धनम् । नष्टं वेहमलं कृत्स्नं, नष्टे घातिचतुष्टये ॥८॥ शुद्धस्फटिकसंकाशं, तेजोमूर्तिमयं वपुः ।। जायते क्षीणदोषस्य, सप्तधातुविजितम् ॥१२॥
नष्टा सदेहजा छाया""॥ ११ ॥ ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मों का क्षय हो जाने पर केश-नखादि नहीं बढ़ते, शरीर का सर्व मल दूर हो जाता है, स्फटिक के समान तेजस्वी शरीर की मूर्ति हो जाती है, सात धातुएँ नहीं रहती हैं, दोषों का क्षय हो जाता है तथा शरीर की छाया नहीं पड़ती है।
श्री जिनसेन आचार्य ने भी महापुराण में कहा है
अच्छायत्वमनुन्मेष-निमेषत्वञ्च ते वपुः । धत्ते तेजोमयं दिव्यं, परमौदारिकाह्वयम् ॥४६॥ नखकेशमितावस्था, तवाविष्कुरुते विभो ।
रसादिविलयं देहे, विशुद्धस्फटिकामले ॥४९॥ पर्व २५ हे भगवान् ! आपके तेजोमय और दिव्य स्वरूप परमौदारिक शरीर की न तो छाया ही पड़ती है और न नेत्रों की पलक झपकती है। आपके नख और केश ज्यों के त्यों रहते हैं। उनमें वृद्धि नहीं होती है, इससे ज्ञात होता है कि आपके शरीर में रस, रक्त आदि का अभाव है।
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