Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
१४४ ]
पूर्वकरण गुणस्थान में गुणश्रेणीनिर्जरा
शंका - आठवें गुणस्थान में किसी भी कर्म का क्षय नहीं होता, ऐसा धवल ग्रंथ में कहा है फिर वहाँ पर असंख्यात गुणी निर्जरा कैसे ?
समाधान –आठवें गुणस्थान का नाम 'अपूर्वकरण - प्रविष्ट शुद्धि संयत' है । अर्थात् अपूर्वकरण रूप परिणामों में विशुद्धि को प्राप्त जीव अपूर्व करण- प्रविष्ट शुद्धि संयत होता है । अपूर्वकरण रूप विशुद्ध परिणामों के द्वारा अर्थात् शुभ उपयोग के द्वारा प्रतिसमय कर्मों की असंख्यात गुणी निर्जरा होय है, किन्तु किसी भी कर्म प्रकृति का समस्त कर्म निर्जरा को प्राप्त नहीं होय है, इसलिये आठवें गुणस्थान में क्षय का अभाव कहा है ।
- जै. ग. 27-6-66 / IX / शा. ला.
उपशम चारित्र श्रष्टम गुणस्थान से प्रारम्भ
शंका-उपशम चारित्र किस गुणस्थान में होता है ?
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान - प्रारम्भ की अपेक्षा उपशम चारित्र अपूर्वकरण आठवें गुणस्थान से होता है । पूर्णता की अपेक्षा उपशम चारित्र उपशांत मोह ग्यारहवें गुणस्थान में होता है । यदि कहा जाय कि अपूर्वकरण आठवें गुणस्थान में कर्मों का उपशम नहीं होता है फिर इस गुणस्थानवर्ती जीवों को उपशमक या औपशमिक चारित्र कैसे कहा जा सकता है ? ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि भावी अर्थ में भूतकालीन अर्थ के समान उपचार कर लेने से आठवें गुणस्थान में उपशमक ( उपशम चारित्र ) व्यवहार की सिद्धि हो जाती है। कहा भी है- " अक्षपकानुपशमकानां कथं तद्व्यपदेशश्चेन्न, भाविनि भूतवदुपचारतस्तत्सिद्धं ।" धवल पु० १ पृ०
१८१ ।
इसका भाव ऊपर लिखा जा चुका है ।
-- जै. ग. 11-5-72 / VII / .....
निवृत्ति में नाना जीवों सम्बन्धी परिणामों की समानता - असमानता का विवेचन शंका- अपूर्वकरण के विषय में कहा गया है भिन्न-भिन्न समयों में नाना जीवों के परिणाम विषम होते हैं। जीवों के परिणाम किसी से मिलते नहीं हैं। किन्तु अनिवृत्तिकरण में कहा गया है कि नाना जीवों के परिणाम समान होते हैं । सो इसका क्या अभिप्राय है ।
समाधान-अधःकरण में भिन्न समय वाले जीवों के परिणाम सदृश भी हो सकते हैं उस प्रकार अपूर्वकरण के भिन्न समयों में स्थित जीवों के परिणाम सदृश नहीं हो सकते हैं क्योंकि पूर्व समय की उत्कृष्ट विशुद्धता से भी उत्तर समय की जघन्य विशुद्धता अनन्तगुणी है । अपूर्वकरण के प्रत्येक समय के परिणामों की संख्या असंख्यात है अर्थात् एक समय में असंख्यात प्रकार की विशुद्धता वाले परिणाम हो सकते हैं अतः प्रपूर्वकरण में एक ही समय वाले जीवों के परिणाम सदृश भी हो सकते हैं और विदृश भी हो सकते हैं ।
Jain Education International
अनिवृत्तिकरण के प्रत्येक समय में एक ही प्रकार के परिणाम होते हैं । इसलिये अनिवृत्तिकरण के एक समय में स्थित सब जीवों के परिणाम सदृश ही होंगे, विदृश नहीं हो सकते हैं । किन्तु श्रनिवृत्तिकरण के भिन्न-भिन्न समयों में स्थित जीवों के परिणाम विदृश ही होंगे ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org