Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २०३
प्रारग
द्रव्य-भाव प्राणों का स्वरूप
शंका-चैतन्य प्राण को ही भाव प्राण कहते हैं क्या ?
समाधान-मुक्त जीवों के तो शुद्ध चेतना ही भाव प्राण है। संसारी जीव के इन्द्रिय, बल, आयु और उच्छ्वास ये चार प्राण हैं । श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने कहा भी है
पारणेहि चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुग्छ । सो जीवो पाणा पुण बलमिदियमाउ उस्सासो ॥३०॥ पंचास्तिकाय
टीका-"यद्यपि शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धचैतन्यादिप्राणजिवति तथाप्यनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण द्रव्यरूपस्तथाशुद्धनिश्चयनयेन भावरूपैश्चतुभिः प्राणः संसारावस्थायां वर्तमानकाले जीवति, जीविस्सदि भाविकाले जीविष्यति यो हि स्फुटं पुध्वं जीवितः स जीवः ।"
यद्यपि जीव शुद्ध निश्चयनय से शुद्धचैतन्यादि प्राणों से जीता है, तथापि अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से जो बल, इन्द्रिय, आयु व श्वासोच्छ्वास इन चार द्रव्यों प्राणों से तथा अशुद्ध निश्चयनय से बल इन्द्रिय प्रायु श्वासोच्छवास इन चार भावरूप प्राणों से जीता है, जीवेगा और पहले जीता था वह प्रकटपने में संसारी जीव है।
"पौद्गलिक ध्येन्द्रियादि व्यापाररूपाः व्यप्राणाः । तनिमित्तभूत ज्ञानावरणवीयाँतरायक्षयोपशमादिविज भितचेतनव्यापाररूपा भावप्राणाः।" गो० जी० गा० १२९ टोका।
पुद्गल-द्रव्यकरि उत्पन्न द्रव्य इन्द्रियादिक तिनके प्रवर्तन रूप तो द्रव्य प्राण हैं। उनके कारणभूत ज्ञानावरण और वीर्य-अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से प्रकट भया जो चैतन्य का व्यापार सो भावप्राण है।
-जं. ग. 30-11-72/VII/ र. ला. जैन, मेरठ द्रव्य प्रायुप्राण व भाव प्रायुप्राण प्रादि का स्वरूप शंका-भाव प्राण किसे कहते हैं ? भाव आयु प्राण कौनसा है और व्यायु प्राण कौनसा है ? इसी प्रकार श्वासोच्छ्वास में भी ये भेव कैसे घटित होते हैं ? तथा वचन और काय में भी कैसे घटित होते हैं ?
समाधान-चैतन्य के अन्वयवाले भाव प्राण हैं और पुद्गल अन्वयवाले द्रव्य प्राण हैं। श्री अमृतचन्द आचार्य ने पंचास्तिकाय गाथा ३० की टीका में कहा भी है
"इन्द्रियबलायुरुच्छ्वासलक्षणा हि प्राणाः तेषु चित्सामान्यान्वयिनो भावप्राणः, पुगलसामान्यान्वयिनो दव्यप्राणाः।"
अर्थ-प्राण, इन्द्रिय, बल, आयु तथा उच्छवास स्वरूप हैं। चित्सामान्यरूप अन्वयवाले भाव प्राण हैं और पुग़ल सामान्यरूप अन्वयवाले द्रव्यप्राण हैं।
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