Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं. रतनचन्द जैन मुख्तार :
समाधान-लब्ध्यपर्याप्तक जीवों की आयु स्थिति जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से अनेक प्रकार की होती है, श्वास का काल भी जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से अनेक प्रकार का होता है। जैसा कि जयधवल पु. १ गाथा १५, १६, १७ व १८ से स्पष्ट है । धवल पु० १४ पृ० ५१३ पर कहा है
__ "वादर निगोद अपर्याप्तकों के मरणयवमध्य को प्रारम्भ करके आवलि के असंख्यातवें भाग प्रमाण जाने पर बाद में सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों के यवमध्य का प्रारम्भ होता है। सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों के यवमध्य के समाप्त होने पर ऊपर आवलि के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थान जाकर वादर निगोद अपर्याप्तकों का मरणयवमध्य समाप्त होता है । यहाँ कितने ही आचार्य अन्तर्मुहूर्त काल कहते हैं। इस प्रकार दोनों यवों के मध्य में देशप्ररूपणा जानकर करनी चाहिये । जघन्य आयु के भीतर संचित हुए सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों के मरकर समाप्त होने के बाद जघन्य प्रायु के भीतर संचित हुए वादर निगोद अपर्याप्त जीव मरकर समाप्त होते हैं, यह उक्त कथन का तात्पर्य है।"
धवल पु० १४ पृ० ५१४ पर सूत्र ६५८ व ६५९ की टीका में लब्ध्यपर्याप्त सूक्ष्म निगोद जीवों की तथा लब्ध्यपर्याप्त वादर निगोद जीवों की आयू स्थिति के विकल्प कहे हैं।
एक श्वास अर्थात् नाड़ी में जो निगोद जीव का १८ बार जन्म-मरण कहा है, वहाँ पर स्वस्थ मनुष्य की नाड़ी का प्रमाण ग्रहण करना चाहिए । जो एक मुहूर्त में ३७७३ श्वास होते हैं। क्षुद्र भव ग्रहण से लब्ध्यपर्याप्तक की मध्यम आयु स्थिति ग्रहण करनी चाहिये ।
-जें. ग. 20-6-68/VI/........ क्षुद्रभव का प्रमाण शंका-'क्षुद्र भव प्रहण प्रमाण' का क्या अर्थ है ? ..
समाधान–'क्षुद्रभव' का अर्थ छोटा भव । सबसे कम आयु लब्ध्यपर्याप्तक जीव की होती है, अतः लब्ध्य पर्याप्तक जीव के भव को क्षुद्र भव कहते हैं । 'क्षुद्र भव ग्रहण प्रमाण', यह काल के प्रमाण का द्योतक है। अर्थात् उनका काल जितना काल एक क्षुद्र भव का होता है। यह काल उच्छवास के अठारहवें भाग प्रमाण होता है या एक संकेण्ड के चौबीसवें भाग प्रमाण होता है। एक सैकेण्ड के चौबीसवें भाग प्रमाण काल को 'क्षुद्र भव ग्रहण प्रमाण' कहते हैं।
-. ग. 2-1-64/VIII/र. ला. गैन, मेरठ
क्षुद्रभव का प्रमाण अन्तर्मुहूर्त नहीं है शंका-धवल पु.१४ पृ० ५१४ पर शंका-समाधान से यह प्रतीत होता है कि क्षुद्रभव ग्रहण का काल अन्तर्मुहूर्त से कम है । क्या यह ठीक है ? क्षुद्रभव का काल भी अन्तमुहूर्त होना चाहिए ?
समाधान-लब्ध्यपर्याप्तक जीवों की आयु क्षुद्रभव है जो अन्तर्मुहूर्त काल है किन्तु यह अन्तर्मुहूर्त पर्याप्तकों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त प्रमाण से कम है अतः क्षुद्रभव को अन्तर्मुहूर्त नहीं कहा है।
-जं. ग. 19-9-66/IX/ र. ला. गेन, मेरठ
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