Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार।
योग की थोड़े से ही अवयवों में प्रवृत्ति मानने में विरोध आता है, अथवा एकजीव में उसके खंडखंडरूप में प्रवृत्त होने में विरोध आता है। इसलिये स्थित जीव प्रदेशों में कर्मबंध होता है, यह जाना जाता है। दूसरे योग से जीवप्रदेशों में नियम से परिस्पन्द होता है, ऐसा नहीं है, क्योंकि यदि जीवप्रदेशों में परिस्पन्द उत्पन्न होता है तो वह योग से ही उत्पन्न होता है, ऐसा नियम पाया जाता है। इस कारण स्थित जीवप्रदेशों में भी योग के होने से कर्मबंध को स्वीकार करना चाहिये।
-जं. ग. 18-6-70/V/ का. ला. कोठारी प्रात्मप्रदेश का संकोच-विस्तार किस कर्म के उदय से ? शंका-आत्मप्रदेश शरीरप्रमाण संकोच-विस्तार को प्राप्त होते रहते हैं, इसमें किस कर्म-प्रकृति का निमित्त रहता है ?
समाधान-शरीरनामकर्मोदय से आत्मप्रदेश शरीर प्रमाण संकोच-विस्तार को प्राप्त होते रहते हैं । वृहद्रव्यसंग्रह में कहा भी है
"शरीरनामकर्मोदयजनितोपसंहारोपसंहारविस्ताराधीनत्वात् घटादिभाजनस्य प्रदीपवत् स्वदेह परिमाणः शरीरनामकर्मतदुदये सति अणुगुरुदेहप्रमाणो भवति । शरीरनामकर्मजनितस्वदेहपरिमाणः। शरीरनामकर्म तदुदये सति अणुगुरुदेहप्रमाणो भवति । शरीरनामकर्मजनितविस्तारोपसंहारधर्माभ्यामित्यर्थः।" वृहद्रव्यसंग्रह गाथा २ व १० की टीका।
अर्थ-शरीरकर्मोदय से उत्पन्न संकोच तथा विस्तार के अधीन होने से, घटादि में स्थित दीपक की तरह अपने शरीरके बराबर है। शरीरनामकर्मोदय से जीव अपने छोटे तथा बड़े शरीर के बराबर होता है. क्योंकि शरीरनामकर्म से जीव में संकोच-विस्तार शक्ति हो जाती है।
-जं. ग. 23-1-69/V]]-IX/ र. ला. जैन, मेरठ
योग से स्थिति-अनुभाग बन्ध नहीं होता
शंका-जिस समय जीव के शुभयोग होता है क्या उस समय पुण्यप्रकृतियों का स्थिति-अनुभागबंध होता है और जिस समय अशुभ योग होता है, उस समय पापप्रकृतियों का स्थिति अनुभागबंध होता है ?
समाधान-योग से स्थिति-अनुभागबंध नहीं होता है। स्थिति-अनुभागबंध कषाय से होता है। कहा भी है
पडिदिदिअणुभागप्पदेसभेदादुचदुविधो बंधो ।
जोगा पयडिपदेसा ठिदि अणुभागा कसायदो होति ॥३३॥ वृ. द्र. सं. प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध इन भेदों से बंध चार प्रकार का है। योग से प्रकृति तथा प्रदेशबंध होता है और कषाय से स्थिति तथा अनुभाग बंध होता है।
-जें. ग. 6-7-72/1X/ र. ला. जैन, मेरठ
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