Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
तियंचों का तथा मनुष्य अपर्याप्तों का स्पर्शन क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग है। अत: जघन्य स्थितिबन्धक मनष्य अपर्याप्तों का स्पर्शन क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग कहा।
-. ग. 17-1-63/............... देवगति से भी मनुष्यगति की दुर्लभता शंका-आपने एक स्थल पर लिखा कि 'देवपर्याय मिलना कठिन नहीं है वे असंख्यात हैं, किन्तु पर्याप्त मनुष्य तो संख्यात ( २६ अंक ) प्रमाण हैं। देवों का क्षेत्र ७ घन राजू है और मनुष्यों का क्षेत्र ४५ लाख योजन है, अर्थात् देवों से मनुष्यों का क्षेत्र भी स्तोक है और आयु भी अल्प है। इसलिये पर्याप्त मनुष्य पर्याय मिलना कठिन है।' इस पर शंका यह है कि जिस प्रकार देवों की संख्या मनुष्यों से असंख्यातगुणी है उसी प्रकार देवों की आयु भी असंख्यातगुणी है, तब वहां के उत्पत्ति स्थान को रिक्तता अधिक काल पश्चात् होती होगी। फिर क्या देवपर्याय मिलना कठिन नहीं है ?
समाधान-मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियों में जन्म का उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और देवों में भी अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि धवल पु० ९ में मनुष्यपर्याय और मनुष्यनियों में औदारिकशरीर संघातनकृतिका अन्तर पंचेन्द्रिय तियंचपर्याप्त व योनिमतियों के समान अर्थात् अन्तर्मुहूर्त कहा है, और देवों में वैक्रियिक शरीर की संघातन कृतिका अन्तर नारकियों के समान अर्थात् अन्तर्मुहूर्त कहा है । ( धवल पु० ९पृ० ४०४-४०७)। अंतर समान होते हुए भी देवगति में असंख्यात जीव उत्पन्न होते हैं और मनुष्यों में संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं (धवल प०९५०३६.)। देवों में निरन्तर उत्पन्न होने का काल आवलिका असंख्यातवाँ भाग अर्थात असंख्यात समय है और मनुष्यों में निरन्तर उत्पन्न होने का काल संख्यातसमय है । धवल पु०९ पृ० ३८४-३८५।
इससे जाना जाता है कि देवों की अपेक्षा पर्याप्त मनुष्यों में उत्पन्न होना अति कठिन है। इसलिये मनुष्य आयु का प्रत्येक क्षण बहुमूल्य है इसको संयम के बिना व्यर्थ नहीं खोना चाहिये । संयम मनुष्यपर्याय में ही हो सकता है, अन्य पर्यायों में नहीं । सम्यग्दर्शन की प्राप्ति चारों मति में हो सकती है। अतः मनुष्यपर्याय पाकर जिसने संयम धारण नहीं किया उसने इस दुर्लभ पर्याय को व्यर्थ ही भोगों में बरबाद करदी।
-जें. ग. 19-9-66/IX/र. ला. जैन, मेरठ
एक भवावतारी देव शंका-कौन-कौन देव देवगति से च्युत होकर अगले भव में ही मोक्ष जाते हैं ? समाधान-त्रिलोकसार में इन देवों का कथन है
सोहम्मो वरदेवी सलोगवाला य दक्खिणरिदा ।
लोयंतिय सम्वट्ठा तदो चुदा णिवुदि जांति ॥५४८॥ अर्थ-सौधर्मइन्द्र, शची (पट्ट) देवी, सौधर्मस्वर्ग के सोम आदि चार लोकपाल, सनत्कुमार आदि दक्षिण इन्द्र, सर्व लोकान्तिक देव, और सर्व सर्वार्थसिद्धि के देव तहाँ से चयकर मनुष्य होय निर्वाण को प्राप्त होय हैं।
-जें. ग. 27-6-66/IX/हे. घ.
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