Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २४१
जाने पर अभव्यों के प्रभाव का प्रसंग आ जायगा, क्योंकि सब पदार्थ सप्रतिपक्ष हैं । भव्य तथा अभव्य दोनों का अभाव हो जाने पर संसारी जीवों का अभाव हो जायगा । संसारी जीवों का अभाव होने पर मुक्त जीवों का भी प्रभाव हो जायगा तथा जीव का अभाव होने पर अजीव द्रव्य का भी अभाव हो जायगा और प्रत्यक्ष से विरोध
आयगा । धवल १४ / २३३-३४ ।
- पत्राचार 22-10-79 / 1 /ज. ला. जैन, भीण्डर
१. निगोदों का स्वरूप २. एक निगोद शरीर में स्थित जीवों के भी सुख-दुःख, ज्ञान श्रादि श्रसमान होने सम्भव हैं ।
शंका - धवल पु० १३ में लिखा है कि “एक शरीर में रहने वाले अनन्तानन्त निगोद जीवों का जो परस्पर बंध है वह जीवबंध कहलाता है ।" इस पर निम्न प्रश्न है
१. जब एक निगोद जीव को दुःख होता है तब क्या सभी जीवों को, जो उस शरीर के स्वामी हैं, दुःख होता है तथा एक को सुख होने पर सबको सुख होता है ?
२. क्या उनके दुःख सुख का अनुभव अर्थात् वेदन एक जैसा होता है या कुछ अंतर होता है ?
३. आयु कर्म के अतिरिक्त अन्य कर्मों का उदय भी क्या समान होता है ?
४. एक शरीर में स्थित सब निगोदिया जीवों के आयु कर्म की स्थिति बराबर होती है तो वे उन सबके आयु कर्म का बंध एक जैसे परिणामों से होना चाहिये ?
५. क्या उन सब निगोदिया के ज्ञान आदि गुणों की एक समय में एक-सी पर्याय होती है ?
समाधान - जीव और नो कर्म शरीर रूपी पुद्गल के परस्पर बंध होने से मनुष्य तिर्यञ्च प्रादि असमानजातीय द्रव्य पर्याय उत्पन्न होती है। कहा भी है
"तत्रानेकद्रव्यात्मक क्य-प्रतिपत्तिनिबंधनो द्रव्यपर्यायः । स द्विविधः समानजातीयोऽसमानजातीयश्च । असमानजातीयो नाम यथा जीवपुद्गलात्मकोदेवो मनुष्य इत्यादि । यथैव चानेककौशेयककार्पासमयपटात्मको द्विपटिकात्रिपटिके त्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः, तथैव चानेकजीवपुद्गलात्मको देवो मनुष्य इत्यसमानजातीयो द्रव्यपर्यायः ।" प्रवचनसार गाथा ९३ टीका ।
अर्थ – अनेक द्रव्यात्मक एकता की प्रतिपत्ति की कारणभूत द्रव्य पर्याय होती है । वह दो प्रकार है१. समानजातीय २. असमानजातीय । जीव और पुद्गल की उभयात्मक पर्याय असमानजातीय द्रव्यपर्याय है जैसे देव मनुष्य इत्यादि । जैसे रेशमी और सूती धागों ( सूतों ) से बना हुआ कपड़ा द्विपटक त्रिपटक असमानजातीयद्रव्यपर्याय है, उसी प्रकार जीव और पुद्गलों से बनी हुई देव, मनुष्य ऐसी असमानजातीय द्रव्य पर्याय है ।
नोकर्मरूप शरीर एक जीव का भी होता है और बहुत जीवों का भी एक शरीर होता है। धवल पु० १४ में कहा भी है
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