Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २२५ देव नारकी के कितनी इन्द्रियाँ हैं ? शंका-देव व नारकी कितनी इन्द्रिय वाले जीव हैं ? अगर वे पंचेन्द्रिय हैं तो संज्ञी हैं या असंज्ञी ?
समाधान–देव व नारकी संज्ञी पचेन्द्रिय जीव हैं। धवल पु० २ पृ० ४४९ पर नारकियों के संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव समास कहा है तथा पृ० ५३२ पर देवों के संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव समास कहा है।
"संज्ञिनां समनस्कानां नारकदेव मनुष्यादीनां पंचेन्द्रिय पर्याप्तानां स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः श्रोनेन्द्रियमनोवचनकायप्राणापानायुरूपाः दश प्राणाः १० भवंति ।" स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा १४० टीका।
अर्थ--संज्ञी समनस्क पंचेन्द्रिय पर्याप्त नारकी देव मनुष्यों के पाँच इन्द्रियाँ, मनोबल, वचन बल, कायबल, श्वासोच्छ्वास और आयु ये दस प्रारण होते हैं । इससे स्पष्ट है कि देव नारकी संज्ञी पचेन्द्रिय जीव हैं ।
-#. ग. 5-3-70/IX/ जि. प. एकेन्द्रिय को विकलेन्द्रिय नहीं कह सकते शंका-दीन्द्रिय आदि को विकलेन्द्रिय क्यों कहा? एकेन्द्रिय को विकलेन्द्रिय कहा जा सकता है क्या ?
समाधान - इन्द्रियाँ पांच हैं - स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु, श्रोत्र । जिसके ये पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं वह सकलेन्द्रिय अर्थात् समस्त इन्द्रियों वाला होता है। जिसके समस्त अर्थात् पाँचों इन्द्रियाँ नहीं होती हैं कम होती हैं वह विकलेन्द्रिय अर्थात् असमस्त इन्द्रियों वाला होता है । आर्ष ग्रन्थों में द्वीन्द्रिय, तीन-इन्द्रिय, चार इन्द्रिय जीवों को विकल कहा है। ये ही विकल त्रय के नाम से प्रसिद्ध हैं। आर्ष ग्रन्थों में एकेन्द्रिय जीव को विकलेन्द्रिय संज्ञा नहीं दी गई है।
-जं. ग. 24-12-70/VII/ र. ला. जैन, मेरठ उत्कृष्ट प्रायु बन्धक बा० ए० प्र० का स्पर्शन शंका-आयु की उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीव अल्प होते हए भी अतीत काल की अपेक्षा अनन्त है अतः बावर एक इन्द्रिय अपर्याप्त व औदारिक मिश्र काय योग मार्गणाओं में उनका स्पर्शन क्षेत्र सर्व लोक होना चाहिये था; लोक का असंख्यातवाँ भाग क्यों कहा?
समाधान-एकेन्द्रिय बादर अपर्याप्त जीवों का स्पर्शन क्षेत्र ( मारणान्तिक समुद्घात व उपपाद के अतिरिक्त ) लोक का संख्यातवाँ भाग है (धवल पु० ७ पृ० ३९३)। इनमें भी उत्कृष्ट आबाधा आय बाँधने वाले जीव अति अल्प हैं। जिनका स्पर्शन क्षेत्र लोक का असंख्यातवाँ भाग है । यद्यपि अतीत काल की अपेक्षा उनकी संख्या अनन्त है, किन्तु उनका स्पर्शन क्षेत्र लोक का असंख्यातवाँ भाग ही रहता है, क्योंकि उत्कृष्ट आयु बंध के समय मारणान्तिकसमुद्घात व उपपाद नहीं होता।
औदारिक मिश्र काय योग में आयु का बंध लब्ध्यपर्याप्तक जीवों के होता है। लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में सभा जीव भी हैं जो सर्व लोक में भरे हुए हैं। अतः औदारिक मिश्र काय योग में उत्कृष्ट आयू के बंधक जीवों का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org