Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २३७ "अनलानिलकायिकाः तेषु पंचस्थावरेषु मध्ये चलनक्रियां दृष्ट्वा व्यवहारेण असा भण्यंते ।"
अर्थ-उन पाँच स्थावरों में से अग्नि और वायु काय जीवों के चलन क्रिया को देखकर व्यवहार से उनको त्रस कहते हैं।
-जें.ग.31-7-67/VII) ज. प्र. म. कु. वायुकायिक जीवों का क्षेत्र शंका-वायुकायिक बादर पर्याप्त जीव का क्षेत्र ५ राजू वाहल्य राजू प्रतर बताया है सो वह क्षेत्र कहाँ से कहाँ तक है ? इससे बाहर क्या वायुकायिक जीव नहीं होते हैं ?
समाधान-बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव मन्दराचल के मूल भाग से लेकर ऊपर शतार सहस्रार कल्प तक पांच राजू में पाये जाते हैं । इस पाँच राजू से बाहर भी बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव हैं परन्तु बहुत कम हैं। प० ख० पु० ४/८३, ९९-१०० ।
-जं. सं. 2-8-56/VI/ब. प्र. स. पटना
सप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित शंका-मूगफली जमीकंद है या नहीं? यदि जमीकंद नहीं तो फिर जमीन में पैदा होते हुए जमीकंद क्यों नहीं है ?
समाधान-मूगफली जमीन में नीचे लगती है जैसे आलू, सकरकन्द आदि । अतः मूगफली जमीकन्द है किन्तु वह सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति नहीं है क्योंकि गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १८७-१८९ में दिये हए सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति के लक्षण पक्व मूगफली में नहीं पाये जाते । मूगफली की गिरी पर लाल-लाल छाल पतली है अतः मूगफली अप्रतिष्ठित प्रत्येक है । गो० सा० जी० गाथा १८८ ।
-जें. ग.8-2-62/VI/म. च. 5. ला.
निगोदों का अवस्थान सर्वत्र है शंका-नित्य निगोद सातों नरक के नीचे है या वनस्पति अथवा स्थाबर आदि एकेन्द्रिय ही निगोदिया में शामिल हैं ?
समाधान-नित्य निगोद सातवें नरक के नीचे भी है और लोक में सर्वत्र भी है। धवल पु०४ पृ० १०० सत्र २५ में कहा है कि निगोद जीव सर्व लोक में रहते हैं। वह सूत्र इस प्रकार है-“वणप्फदि-काइय-णिगोद-जीवा बावरा सुहमा पज्जत्तापज्जत्ता केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे ॥२५॥"
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पाँच प्रकार के स्थावरों में वनस्पतिकाय प्रत्येक और साधारण के भेद से दो प्रकार की है। साधारण वनस्पति को निगोद भी कहते हैं। पृथ्वीकाय आदि शेष चार स्थावरों के आश्रित निगोद जीव नहीं रहते। जिस प्रत्येक वनस्पति के आश्रय निगोद जीव होते हैं वह सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति होती है।
-जै. ग.6, 13-5-65/XIV/म. मा.
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