Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जंन मुख्तार :
देवियों की माला का मुरझाना शंका-क्या देवांगनामों की मृत्यु से छह माह पूर्व माला नहीं मुरझाती।
समाधान-जो स्वर्ग से च्युत होकर तीर्थकर होते हैं उन की माला नहीं मुरझाती। देवांगना मरकर तीर्थकर नहीं हो सकती, अतः उनकी माला मृत्यु से छह माह पूर्व मुरझा जाती है । त्रिलोकसार गाथा १८५।
-जे. ग. 27-6-66/IX/ हे. च. स्वर्ग में "मद्य" पान से अभिप्राय शंका-स्वर्ग के दशांग भोगों में 'मद्य' भी है। तो क्या देव मद्यपान करते हैं ?
समाधान---'मद्य' शब्द 'मद' से बना है। मद का अर्थ 'हर्षातिरेक' तथा 'वीर्य' भी है। अत: यहां पर मद्यपान का अभिप्राय शराब पीने का नहीं लेना चाहिये, किन्तु हर्षविभोर अथवा वीर्यवद्धक वस्तु पान से प्रयोजन है।
-जे. ग. 23-5-63/1X/ प्रो. म. ला. जैन
लौकान्तिक देव कौन हैं ? शंका-पांचवें स्वर्ग से सर्वार्थसिद्धि तक के क्या सब देव लोकांतिक हैं ?
समाधान-पांचवें स्वर्ग से सर्वार्थसिद्धि तक के सब देव लोकान्तिक नहीं हैं, किन्तु पांचवें ब्रह्मलोक स्वर्ग के प्रान्त भाग में रहने वाले देव लोकान्तिक कहलाते हैं।।
"ब्रह्मलोकोलोकः तस्यान्तो लोकान्तः तस्मिन्भवा लौकान्तिका इति न सर्वेषां ग्रहणम् । तेषां हि विमानानि ब्रह्मलोकस्यान्तेषु स्थितानि ।" सर्वार्थसिद्धि ४।२४ ।
-जें. ग. 1-1-70/VIII/ रो. ला. मि. देव, नारकी संख्यात वर्षायुष्क कैसे ? शंका-धवल पुस्तक ११ पृ० ९० पर देव नारकियों को संख्यात वर्षायुष्क बताया, असंख्यात वर्षायुष्क नहीं, सो किस अपेक्षा से ?
समाधान-प्रकाशन में अशुद्धि के कारण यह शंका हुई है । शुद्ध इसप्रकार है-सचमुच में वे (देवनारकी) असंख्यात वर्षायुष्क ही नहीं हैं, किन्तु संख्यातवर्षायुष्क भी हैं। क्योंकि यहाँ एक समय अधिक पूर्वकोटि को आदि लेकर आगे के आयु विकल्पों को असंख्यातवर्षायु के भीतर स्वीकार किया गया है।
देव और नारकियों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तैतीस सागर होती है अर्थात् देव व नारकियों की आयु एक कोटि पूर्व से कम व अधिक होने से देव व नारकी संख्यातवर्षायुष्क भी हैं और असंख्यातवर्षायुष्क भी हैं, किन्तु भोगभूमिया जीवों की आयु एक कोटिपूर्व से अधिक ही होती है अतः भोगभूमिया असंख्यातवर्षायुष्क ही होते हैं, संख्यातवर्षायुष्क नहीं होते । किन्तु धवल पु० ११ पृ० १८ सूत्र ८ में देव व नारकियों को असंख्यातवर्षायुष्क कहा है, क्योंकि उनमें अधिकतर एक कोटिपूर्व से भी अधिक आयुवाले होते हैं। अन्यत्र भोगभूमिया को ही असंख्यातवर्षायुष्क की संज्ञा दी है।
-पत्ताधार/छ. प्र. स., पटना
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