Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार : पौद्गलिक आयु कर्म द्रव्य आयु प्राण है। आयु कर्मोदय होने पर नरकादि पर्याय रूप भव धारण करने की शक्ति भाव आयु प्राण है । उच्छ्वास निश्वास नाम कर्म श्वासोच्छ्वास-द्रव्यप्राण है। उच्छ्वास निश्वास रूप प्रवृत्ति करने की शक्ति श्वासोच्छवास भाव प्राण है। शरीर नाम कर्म कायरूप द्रव्य प्राण है। शरीर नाम कर्मोदय होने पर कायचेष्टा रूप शक्ति काय बल भाव प्राण है। स्वर नाम कर्म वचन द्रव्य प्राण है। वचन व्यापार करने की शक्ति वचन बल भाव प्राण है।
___"आयुः कर्मोदये सति नारकादि पर्याय रूप भवधारण शक्ति रूपः आयुः प्राणः। उच्छ्वासनिश्वासनामकर्मोदय सहित देहोदये सति उच्छ्वासनिश्वास प्रवृत्तिकारणशक्तिरूप आनपानप्राणः। देहोदये शरीरनामकर्मोदये कायचेष्टा जननशक्तिरूपः कायबलप्राणः । स्वरनामकर्मोदयसहित देहोदये सति वचनव्यापारकारणशक्तिविशेषरूपोवचोबलप्राणः।"
इसका भाव ऊपर लिखा जा चुका है।
-जे. ग. 24-8-72/VII/र. ला. गैन, मेरठ
बलप्रारण व भावयोग, मनोबलप्राण व भावमन, वचनबल प्राण तथा
भाव वचन आदि में अन्तर
शंका-(अ) बल प्राण एवं भाव योग में, (ब) मनोबल प्राण एवं भाव मन में, (स) वचन बल प्राण एवं भाव वचन में, (द) इन्द्रिय प्राण एवं भावेन्दिय में क्या अन्तर है ?
समाधान-(अ) जिनके द्वारा प्रात्मा जीवन संज्ञा को प्राप्त होता है उन्हें प्राण कहते हैं । कहा भी है"प्राणिति एभिरात्मेति प्राणाः" (धवल पु०१पृ० २५६) कर्म-आकर्षण की शक्ति योग है। कहा भी है-"कर्माकर्षण शक्तियोगः" (त्रिलोकसार गाथा ८७ की टीका) "अथवात्मप्रवृत्त कर्मादान निबन्धनवीर्योत्प
वल ११०१४० ) अथवा प्रात्मा की प्रवृत्ति के निमित्त से कर्मों के ग्रहण करने में कारणभत वीर्य (शक्ति) की उत्पत्ति को योग कहते हैं। इस प्रकार बल, प्राण और योग में संज्ञा, लक्षण आदि के भेद से दोनों में अन्तर पाया जाता है।
(ब) मनोबल प्राण में जीव के जीने की मुख्यता है, क्योंकि, "प्राणिति जीवति एभिरिति प्राणाः" अर्थात् जिनके द्वारा जीव जीता है वे प्राण हैं, प्राण की ऐसी व्युत्पत्ति है । मन के निमित्त से आत्मा में जो विशुद्धि पैदा होती है वह भाव-मन है । कहा भी है
"वीर्यान्तराय नोइन्द्रियावरण क्षयोपशमापेक्षात्मनो विशुद्धिर्भावमनः।" ( धवल पु० १ पृ० २५९ मोक्ष शास्त्र २/११ टीका ) वीर्यान्तराय और नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से आत्मा में जो विशुद्धि उत्पन्न होती है, वह विशद्धि भाव मन है। इस प्रकार मनोबल प्राण और भावमन में संज्ञा व लक्षण का अपेक्षा भेद होने से अन्तर है। तथापि वीर्यअन्तराय कर्म के क्षयोपशम और नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम की दोनों में अपेक्षा है और भाव मन के प्रभाव से मनोबल प्राण का प्रभाव हो जाता है (धवल पु० २ पृ० ४४४ ) इस अपेक्षा से मनोबल प्राण और भावमन में समानता है।
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