Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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ध्यक्तित्व और कृतित्व ]
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गोम्मटसार गाथा ८४५ के अतिरिक्त श्री उमास्वामी आचार्य ने अध्याय १० सूत्र ४ में भी कहा"औपशमिकाविभव्यत्वानांच ॥३॥ अन्यत्र केवल सम्यक्त्व ज्ञानसिद्धत्वेभ्यः ॥४॥
प्रौपशमिक आदि भावों के और भव्यत्व भाव का अभाव होने से मोक्ष होता है, किन्तु क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन और क्षायिक भाव का अभाव नहीं होता है।
__ "यदि चत्वार एवावशिष्यन्ते, अनन्तवीर्यादीनां निवृत्तिः प्राप्नोति ? नैष दोषः, ज्ञानवर्शनाविनाभावित्वाबनन्तवीर्यादीनामविशेषः ।" सर्वार्थसिद्धि १०।४।
सिद्धों के यदि चार ही भाव रहते हैं तो अनन्त वीर्य आदि अर्थात् अन्य क्षायिक भावों की निवृत्ति प्राप्त होती है ? आचार्य कहते हैं कि ऐसा दोष देना ठीक नहीं है, क्योंकि ज्ञान दर्शन के अविनाभावी अनन्तवीर्यादिक अर्थात् अन्य क्षायिक भाव भी सिद्धों में अवशिष्ट रहते हैं।
__ -जं. ग. 11-12-69/VI/ र. ला. जैन, मेरठ ऊर्ध्वलोक सिद्ध व अधोलोक सिद्ध का अर्थ शंका-त. रा. वा. पृ. ६४७ में ऊर्बलोक अधोलोक और तिर्यग्लोक से सिद्ध बताये हैं सो इनका स्पष्ट क्या है ?
समाधान-जो पृथ्वीतल से ऊपर आकाश में अधर सिद्ध हुए हैं वे ऊर्ध्वलोक सिद्ध हैं जो समुद्र आदि में पृथ्वीतल से नीचे के स्थान से सिद्ध हए हैं वे अधोलोक सिद्ध हैं। इन दोनों के अतिरिक्त शेष सिद्ध तिर्यगलोक सिद्ध हैं।
-जं. ग. 27-3-69/IX/ सु. शी. सा.
समवसरण
समवसरण में नीच गोत्री का भी गमन
शंका-नीचगोत्र के उदय वाला मनुष्य भगवान के समवसरण की सभा में जाता है या नहीं ?
समाधान-हरिवंशपुराण सर्ग ५७ श्लोक १७३ में कहा है "पापी, विरुद्ध कार्य करने वाले, शूद्र, पाखण्डी, विकलाङ्ग, विकलेन्द्रिय तथा भ्रान्त चित्त के धारक मनुष्य बाहर ही प्रदक्षिणा देते रहते हैं अर्थात् वे सभा में नहीं जाते।" तिलोयपण्णत्ती अध्याय ४ गाथा ९३२ में कहा है कि कोठों में मिथ्यादृष्टि, अभव्य,असंज्ञी जीव, अनध्यवसाय से युक्त, संदेह से युक्त और विविध प्रकार की विपरीतताओं से युक्त जीव नहीं होते। इन दोनों ग्रन्थों में नीच गोत्र के उदय वाले मनुष्यों का समवसरण की सभा में जाने का निषेध नहीं है।
-जें. म. 23-5-63/IX/ प्रो. म. ला. ऐन
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