Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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[पं० रतनचन्द जैन मुख्तार ।
समाधान-दिव्यध्वनि रूप वचन ज्ञान के कार्य हैं ( धवल पु० १ पृ० ३६८ )। ज्ञान और प्रात्मा का तादात्म्य सम्बन्ध है अतः अभेदनय से दिव्यध्वनि केवलज्ञानी की आत्मा का कार्य है। भाव वचन की सामर्थ्य से युक्त क्रिया वाले आत्मा के द्वारा प्रेरित होकर पुद्गल वचन रूप से परिणमन करते हैं ( सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सूत्र १९, राजवातिक अ०५ सत्र १९ वातिक १५)। प्रतः दिव्यध्वनि में भाषावर्गणा उपादान कारण है और केवली निमित्त कारण हैं। तीर्थकर प्रकृति रूप कार्माण वर्गणा निमित्त कारण भी नहीं है, क्योंकि सामान्य केवलियों की भी दिव्यध्वनि होती है। यदि केवली को निमित्त कारण न माना जावेगा तो दिव्यध्वनि में प्रामाणिकता का प्रभाव हो जायगा।
-जें. ग. 27-12-64/IX/ चांदमल
दिव्यध्वनि का नियत व अनियत काल शंका-क्या तीर्थकर भगवान को दिव्यध्वनि अनियत समय पर खिर सकती है ?
समाधान-जन स्याद्वाद सिद्धान्त में काल नय और अकाल नय ऐसे दो नय माने गये हैं। कुछ कार्यों का तो अपना नियत काल होता है और वे कार्य अपने नियत काल पर ही होते हैं । कुछ कार्यों का नियत काल नहीं होता है। कारणों के मिलने पर हो जाते हैं । दिव्यध्वनि के लिये तीनों संध्या काल तो नियत हैं, किन्तु गणधर, चक्रवर्ती आदि के प्रश्न पर अनियत समय भी खिर जाती है।
'सेसेसु समएसु गणहर देविंद चक्कवट्टीणं । पण्हाणुरुवमत्थं विश्वभुणी अ सत्तभंगीहिं ॥४९॥' तिलोयपण्णत्ती
अर्थ-गणधर, इन्द्र, चक्रवर्ती के प्रश्नानुरूप अर्थ के निरूपणार्थ दिव्यध्वनि शेष समयों में भी निकलती है अर्थात नियत समयों के अतिरिक्त समय में भी निकलती है।
-जै.ग. 4-9-69/VII/ सु. प्र.
भवि भागन बच जोगे वशाय
शंका-उत्तर पुराण पर्व ७० में लिखा है कि सुप्रतिष्ठ केवली ने अन्धक वृष्टि के प्रश्न को सुनकर उत्तर दिया । क्या केवली प्रश्न सुनते हैं और उत्तर देते हैं। क्या प्रश्न सुनने व उत्तर देने का विकल्प केवली के संभव है।
समाधान-उत्तर पुराण पर्व ७० श्लोक १२५-१२६ में लिखा है-"सब देवों के साथ-साथ अन्धकवृष्टि भी उनकी पूजा के लिए गया था। वहाँ उसने आश्चर्य से पूछा कि हे भगवन् ! इस देव ने पूजनीय आपके ऊपर यह महान उपसर्ग किस कारण किया है ? अन्धक वृष्टि के ऐसा कह चुकने पर जिनेन्द्र भगवान सुप्रतिष्ठ केवली कहने लगे।"
केवली भगवान के क्षायिक केवलज्ञान होता है, अत: उनको इन्द्रियों व मन से ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है। अतः प्रश्न सुनकर उत्तर देना यह संभव नहीं है। किन्तु दिव्यध्वनि में भव्य जीव का पूण्य कारण होता है। इसलिये कारण की अपेक्षा से प्रश्न का उत्तर देना संभव है । कहा भी है
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