Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १७ अतः राजा श्रेणिक का नरक में उत्पन्न होने के समय सम्यग्दर्शन नहीं छूटा, क्योंकि वह क्षायिक सभ्यरदृष्टि था और क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न हो जाने के पश्चात् कभी नहीं छूटता ।
-जें. ग. 26-11-70/VII/ना. स., रेवाड़ी सगर के ६० हजार पुत्र मरे या मूच्छित हुए ? शंका-सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र खाई खोदते मरण को प्राप्त हुए थे या मात्र मूच्छित हुए थे ?
समाधान-इस सम्बन्ध में उत्तरपुराण व पद्मपुराण में भिन्न-भिन्न कथन पाया जाता है। दोनों ही महानाचार्य थे। इन दोनों कथनों में से कौनसा कथन ठीक है, यह नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यहाँ पर वर्तमान में केवली या श्र तकेवली का अभाव है। अतः उन दोनों कथनों का उल्लेख किया जाता है।
उत्तरपुराण पर्व ४८ के अनुसार सगर चक्रवर्ती के मित्र मणिकेतुदेव सगर को वैराग्य उत्पन्न कराने के लिये, नाग का रूप धरकर कैलाश पर्वत पर आया और सगर के पुत्रों को भस्म की राशि के समान कर दिया। जब पुत्रों के मरण के समाचार से सगर ने दीक्षा ले ली तो मणिकेतुदेव ने मायामयी भस्म से अवगुण्ठित राजकुमारों को सचेत कर दिया और उन्होंने भी दीक्षा ले ली।
पपपुराण पंचम पर्व के अनुसार सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने दण्डरत्न से पाताल तक गहरी पृथ्वी खोद डाली यह देख नागेन्द्र ने क्रोध से प्रज्वलित हो उन राजकुमारों की ओर देखा और उस क्रोधाग्नि की ज्वालाओं से वे चक्रवर्ती के पुत्र भस्मीभूत हो गये । श्लोक २५१-२५२ ।
उत्तरपुराण के कथनानुसार सगर चक्रवर्ती के पुत्र मूच्छित हुए थे और पद्मपुराण के कथनानुसार वे मरण को प्राप्त हुए थे।
-जं. ग. 27-6-66/IX/हे. च.
समन्तभद्र स्वामी की भावि गति
शंका-पंचमकाल में जघन्य तीन संहनन बतलाये हैं। अद्ध नाराच संहननवाला १६ वें स्वर्ग तक जा सकता है। श्री समन्तभद्र आचार्य कौनसे स्वर्ग में गये ? क्या वे आगामी तीर्थकर होंगे?
समाधान-कर्म प्रकृति ग्रन्थ गाथा ८९ 'चउत्थे पंचम छ? कमसो वियछत्तिगेक्क संहणणं ।' द्वारा यह बतलाया है कि चौथे काल में छह संहनन, पंचम काल में तीन संहनन और छठे काल में अन्तिम एक संहनन होगा। गाथा ८३ में इन संहननों का कार्य बतलाया है।
सेव?ण य गम्मइ आदीदो चदुसु कप्पजुगलो त्ति । तत्तो दुजगल-जुगले कीलियणारायणद्धोत्ति ॥३॥
अर्थ-सपाटिका संहनन बाला जीव आठवें स्वर्ग तक, कीलक संहनन वाला १२ वें स्वर्ग तक एवं अर्धनाराच संहननवाला १६ वें स्वर्ग तक उत्पन्न हो सकता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org