Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
इन उपर्युक्त लक्षणों से यह सिद्ध हो जाता है कि 'प्रत्याख्यानावरण कषाय' सकल चारित्र को घात करती है। देशचारित्र अर्थात् संयमा-संयम को घात करने का कार्य प्रत्याख्यानावरण कषाय का नहीं है। अतः प्रत्या, ख्यानावरण कषाय सकलचारित्र को घात करने की अपेक्षा सर्वघाती ही है, किन्तु इसके उदय में संयमासंयम हो सकता है अत: संयमासंयम की अपेक्षा देशघाती कहा जा सकता है। विशेष जानकारी के लिये षखंडागम पुस्तक ५, पृष्ठ २०२, पुस्तक ७, पृष्ठ ९४ तथा गो० जीवकांड गाथा ३० की जी० प्र० टीका देखनी चाहिए।
-जं. सं. 25-7-57/ र. ला. क., केकड़ी छठे गुणस्थान में अशुभ लेश्या का अस्तित्व शंका-क्या 'वकुश' और कुशीलमुनि छठे गुणस्थान वाले होते हैं, अगर हैं तो छहों लेश्या कैसे हो सकती हैं जबकि पांचवें गुणस्थान में तीन शुभ लेश्या कही हैं ?
समाधान-सर्वार्थसिद्धि अध्याय ९, सूत्र ४७ की टीका में 'प्रतिसेवनाकुशील व वकुश के छहों लेश्या और कषायकुशील के अन्त की चार लेश्या होती हैं ऐसा कथन है, किंतु यह कथन अपवादस्वरूप है । उत्सर्ग से तो तीन शुभ ही लेश्या होती हैं । ये मुनि भावलिंगी छठे गुणस्थान वाले होते हैं। इसी सूत्र की टीका में 'स्थान' का कथन करते हुए कहा है कि इन मुनियों के संयमलब्धि स्थान होते हैं। संयमलब्धिस्थान छठे गुणस्थान से नीचे गुणस्थान वालों के नहीं होते हैं। उपकरण में आसक्ति के कारण कदाचित् आर्तध्यान संभव है उस आर्तध्यान के द्वारा तीन अशुभ लेश्या भी संभव है।
- जे. सं. 30-1-58/VI/रा. दा. कॅराना प्रमत्तसंयत गुणस्थान तक के सभी जीवों को असाता का उदय व उदीरणा दोनों
(जब भी उदय हों) युगपत् होंगे शंका-क्या तीव्र असाता के उदय में दुख नहीं होता है जब तक कि उदीरणा न हो।
समाधान-छठे गुणस्थान तक जहाँ असाता का उदय है वहाँ असाता की उदीरणा अवश्य है। षट्खण्डागम पुस्तक १५, पृष्ठ ४४ पर कहा है 'वेदनीय कर्म के मिथ्यादृष्टि से लेकर प्रमत्तसंयत तक उदीरक हैं। विशेष इतना है कि अप्रमत्त गुणस्थान के अभिमुख हुए प्रमत्तसंयत जीव के अन्तिम समय में उसकी उदीरणा व्युच्छिन्न हो जाती है । सातवें गुणस्थान से केवल साता वेदनीय का बंध होता है जिसकी आबाधा अन्तर्मुहूर्त मात्र
रण व विशुद्धि परिणामों के द्वारा घात को प्राप्त हुए असाता वेदनीय के तीव्र उदय का सातवें आदि गुणस्थानों में अभाव है । सातवें आदि गुणस्थानों में ध्यान अवस्था होने से इन्द्रिय जनित सुख-दुःख का बुद्धिपूर्वक वेदन नहीं होता। छठे गुणस्थान तक असाता का उदय व उदीरणा दोनों होती हैं अतः वहाँ पर उदीरणा के बिना केवल तीव्र उदय से दुःख होने या न होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।
-जं. सं. 16-1-58/VI/रा. दा. कराना
स्त्री-छठा गुणस्थान शंका-स्त्रियों में छठा गुणस्थान होता है। ऐसा आचार्यप्रवर भूतबली ने शास्त्र में लिखा है। अगर ऐसा है तो कृपया बता कि स्त्रियों को पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org