Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ १०५
गृहीत व प्रगृहीत मिथ्यात्व के भेद व स्वरूप
शंका-एकांत, विपरीत, विनय, संशय और भज्ञान ये मिथ्यात्व के पाँच भेद अग्रहीत मिथ्यात्व के हैं या गृहीत मिथ्यात्व के हैं ?
समाधान-एकांत मिथ्यात्व, विपरीत मिथ्यात्व, विनय मिथ्यात्व, संशय मिथ्यात्व और अज्ञान मिथ्यात्व ये पांचों मिथ्यात्व परोपदेश से या कुशास्त्र के पढ़ने से होते हैं, अतः ये गृहीत मिथ्यात्व हैं। अनादि काल से मिथ्यात्व कर्मोदय के कारण जो आत्मा व शरीर में भेद नहीं होरहा है वह अगृहीत मिथ्यात्व है। अनादि काल से शरीर में ही 'अहं' बुद्धि हो रही है। मिथ्यात्व के त्याग में ही प्रात्महित है।
-जं. ग. 25-3-71/VII; र. ला. जैन, मेरठ
शंका-गृहीत मिथ्यात्व का क्या लक्षण है और इसके कितने भेद हैं ?
समाधान-गृहीत मिथ्यात्व का लक्षण तथा उसके भेदों का कथन श्री पूज्यपाद आचार्य ने अ०८ सूत्र १ को टीका में इस प्रकार से किया है "मिथ्यावर्शन द्विविधम, नैसर्गिक परोपदेश पूर्वकं च । तत्र परोपदेशमन्तरेण मिथ्यात्वकर्मोदयवशाद यदाविर्भवति तत्त्वार्थाश्रद्धानलक्षणं तन्नसगिकम् । परोपदेशनिमित्तं चतुर्विधम्, क्रियाक्रियावाद्यज्ञानिक-वैनयिकविकल्पात् । अथवा पंचविधं मिथ्यादर्शनम् एकान्तमिथ्यावर्शनं विपरीतमिथ्यादर्शन संशयमिथ्यावर्शनं बैनयिकमिथ्यादर्शनं आज्ञानिकमिथ्यादर्शनं चेति ।"
अर्थ-मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है-नैसर्गिक ( अगृहीत ), परोपदेशपूर्वक (गृहीत)। जो परोपदेश के बिना मिथ्यादर्शन कर्म के उदय से जीवादि पदार्थों का अश्रद्धानरूप भाव होता है, वह नैसर्गिक ( मृहीत ) मिथ्यादर्शन है। तथा परोपदेश के निमित्त से होने वाला मिथ्यादर्शन चार प्रकार है-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानी तथा वैनयिक । अथवा मिथ्यादर्शन ४ प्रकार का है-एकान्त मिथ्यादर्शन, विपरीत मिथ्यादर्शन, संशय मिथ्यादर्शन वैनयिक मिध्यादर्शन ।
एकान्त-मिथ्यादर्शन आदि मिथ्यादर्शन परोपदेश से होते हैं अतः ये गृहीत मिथ्यादर्शन हैं।
जे. ग.4-2-71/VII/क. च.
गृहीतागृहीत मिथ्यात्व सर्व गतियों में सम्भव
शंका-गृहीत मिथ्यात्व और अगृहीत मिथ्यात्व कौन-कौनसी गति में होता है ?
समाधान-अगृहीत मिथ्यात्व तो अनादि काल से लगा हुआ है जो चारों गतियों में होता है। मनुष्यगति में जिसने गृहीत मिथ्यात्व ग्रहण कर लिया है, यह जीव मरकर जब अन्य गति में जाता है तो उसके संस्कार साथ में जाते हैं। इसलिये गृहीत मिथ्यात्व भी चारों गतियों में पाया जाता है।
-जं. ग. 5-6-67/IV/ब. के. ला.
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