Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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ध्यक्तित्व और कृतित्व ]
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आयुबन्ध योग्य गुणस्थानों में ही मरण शंका-धवल पुस्तक नं० ८ बंधस्वामित्वविचय पृष्ठ १४५ पर जिस गुणस्थान के साथ आयु बंध संभव है उसी गुणस्थान के साथ जीव मरता है अन्य गुणस्थान के साथ नहीं। यदि ऐसा है तो राजा श्रेणिक को आयु बंध किस गुणस्थान में हुआ तथा मरण किस गुणस्थान में हुआ?
समाधान-धवल पु० ८पृ० १४५ पर यह कहा गया है कि तीसरे गुणस्थान में मरण नहीं है क्योंकि तीसरे गुणस्थान में किसी भी आयु का बंध संभव नहीं है। यह साधारण नियम है कि जिस गुणस्थान में किसी भी आयु का बंध नहीं होता उस गणस्थान में मरण भी नहीं होता, किन्तु उपशम श्रेणी के चार गुणस्थान इस नियम के अपवाद हैं। इस नियम का यह अर्थ नहीं है कि जिस गुणस्थान में विवक्षित आय का किसी व्यक्ति के बी उस व्यक्ति का उस ही गुणस्थान में मरण होना चाहिये। किसी व्यक्ति ने देवायु का बंध छटे गुणस्थान में किया उसका मरण पाँचवें, चौथे, दूसरे या पहिले गुणस्थान में भी हो सकता है। किसी ने चौथे गुणस्थान में देवायु का बंध किया है उसका मरण पाँचवें, छ8, सातवें आदि गुणस्थानों में अथवा पहिले दूसरे गुणस्थान में भी सभव है ।
राजा श्रेणिक ने नरक आयु का बध मिथ्यात्व गुणस्थान में किया किन्तु मरण चतुर्थ गुणस्थान में हुआ क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि थे। चतुर्थ गुणस्थान में देव व मनुष्य आयु का बध संभव है अतः राजा श्रेणिक का चतुर्थ गुणस्थान में मरण होने से उपर्युक्त नियम के अनुसार कोई बाधा नहीं आती।
-णे. ग. 29-3-62/VII/ज. कु. दूसरे तीसरे गुणस्थान का काल-विषयक अल्पबहुत्व शंका-सासादन गुणस्थान का काल सम्यग्मिथ्यादृष्टि तीसरे मिश्र गुणस्थान के काल से ज्यादा है या कम है ?
समाधान- सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान के काल से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का काल संख्यातगुणा है। धवल पु० ३ पृ० २५० सूत्र १२ की टीका में कहा भी है
"सम्मामिच्छाविढिअद्धाअंतोमुत्तमेत्ता, सासणसम्मादि@िअद्धा वि छावलिय मेत्ता । किंतु सासणसम्मादिट्टिअद्धादो सम्मामिच्छाइट्रिअद्धा संखेज्जगुणा।"
___ अर्थ-सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है और सासादन सम्यग्दृष्टि का काल छह आवली प्रमाण है। किन्तु फिर भी सासादन सम्यग्दृष्टि के काल से सम्यग्मिथ्यादृष्टि का काल संख्यातगुणा है।
-जे.ग. 15-5-69/x/र. ला. जैन, मेरठ
जघन्य अन्तर्मुहूर्त का प्रमाण शंका-जघन्य अन्तर्मुहूर्त में कितना समय होता है ?
समाधान-जघन्य अन्तर्मुहूर्त आवली का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण होता है । धवल पु० ७ पृ० २८७ पर कहा भी है
"एत्थ आवलियाए असंखेज्जवि भागो अंतोमुत्तमिदि घेत्तम्वो। कुदो ? आइरिय परंपरागदुवदेसादो।"
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