Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
८४ ]
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
आसन, शयन, वाहन, भोजन, वस्त्र तथा चारणादिक जितना भी परिकर था, वह सब आदिनाथ महाराज को इन्द्र से प्राप्त होता था। ज्ञानपीठ पद्मपुराण, प्रथम भाग पृष्ठ ४७ ।
-जें. ग. 2-2-78/दि0 जैन ध. र. म., फुलेरा शंका-तीर्थकर भगवान की गृहस्थ अवस्था में अणुव्रत मानते हैं, लेकिन वे स्वर्ग से देवों का लाया हआ भोजन करते हैं। जब देव अविरती हैं तो वह भोजन कैसे करें ? भगवान दीक्षा के समय पिच्छी-कमण्डलु रखते हैं या नहीं?
समाधान-श्री तीर्थंकर भगवान् आठ वर्ष की आयु में देशसंयमी हो जाते हैं । उत्तर पुराण पर्व ५३ श्लोक ३५ में श्री १०८ जिनसेन स्वामी ने कहा भी है
स्वायुराद्यष्टवर्षेभ्यः, सर्वेषां परतो भवेत् । उदिताष्ट-कषायाणां तीर्थेषां देशसंयमः॥३५॥
अर्थ-जिनके प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन सम्बन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ इन आठ कषायों का ही केवल उदय रह जाता है; ऐसे सभी तीर्थंकरों के अपनी आयु के प्रारम्भिक पाठ वर्ष के बाद देशसंयम हो जाता है।
देशव्रती पुरुष को अविरत सम्यग्दृष्टि के हाथ का भोजन कर लेने में कोई बाधा नहीं है।
श्री १००८ तीर्थंकर भगवान् संयम का उपकरण पिच्छी अवश्य रखते हैं।
-जे.ग 8-11-65/VII/ब्र. कॅ. ला.
ऋषभादि तीर्थंकरों का शरीर जन्म से ही परमौदारिक कहा जा सकता है
शंका–तीर्थंकर भगवान के जन्म से ही परमौदारिक शरीर होता है या केवलज्ञान होने पर परमौवारिक शरीर हो जाता है।
समाधान-तीर्थंकर भगवान् के जन्म-समय जो औदारिक शरीर होता है उसमें कुछ विशेषता होती है
जैसे-वात-पित्त-कफ के दोषों से उत्पन्न हुई व्याधियों का न होना, बुढ़ापा न आना, स्वेद का न होना इत्यादि । इन विशेषताओं के कारण तथा मोक्ष का मूल कारण होने से तीर्थंकर भगवान् के शरीर को केवलज्ञान से पूर्व भी परमौदारिक (उत्तम औदारिक ) शरीर कह देने में कोई बाधा नहीं आती है। श्री जिनसेन आचार्य ने कूमार-काल के कथन में कहा भी है--
तदस्य रुरुचे गात्रं, परमौदारिकाह्वयम् । महाभ्युदय-निःश्रेयसार्थानां, मूलकारणम् ॥ १५/३२ महापुराण
जो महाभ्युदय रूप मोक्ष का मूल कारण था, ऐसा भगवान् का परमौदारिक शरीर अत्यन्त शोभायमान हो रहा था। किन्तु इस परमौदारिक शरीर में और केवलज्ञानी के परमौदारिक शरीर में महान् अन्तर है। जैसेतीर्थंकर के जन्म-समय के परमौदारिक शरीर में क्षुधा आदि की बाधा होती है किन्तु केवली के परमौदारिक शरीर में क्षुधा आदि की बाधा नहीं होती है। कहा भी है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org